SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । M १ . जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23 स्वप्न देखे-ऊँचा सुमेरु पर्वत, सुशोभित कल्पवृक्ष, केसरीसिंह, वृषभ, सूर्य-चन्द्र, रत्नों से भरा समुद्र और अष्टमंगल सहित देव। अपने आँगन में मुनिराज का पदार्पण जिनका मुख्य फल है - ऐसे वे सात मंगलस्वप्न देखकर श्रेयांसकुमार का चित्त अतिप्रसन्न हुआ।। प्रात:काल होते ही दोनों भाई उस स्वप्न की बात और मुनिराज ऋषभदेव का गुणगान कर रहे थे कि इतने में उन योगीराज मुनिराज ने हस्तिनापुर में प्रवेश किया। मुनिराज के आगमन से आनन्दित होकर चारों ओर से नगरजनों के समूह मुनिराज के दर्शन करने उमड़ पड़े। भोले-भाले लोग कहते थे कि मुनिराज फिर अपनी रक्षा करने पधारे हैं। 'ऋषभदेव जगत के पितामह हैं' ऐसा सुना था, उन जगतपिता को आज प्रत्यक्ष देखा। मुनिराज के आगमन की बात सुनकर नगरजन भोजनादि कार्य छोड़कर शीघ्रातिशीघ्र दर्शन करने के लिये निकल पड़े। जब सारे नगर में ऐसा हर्षमय कोलाहल हो रहा था, तब भी मुनिराज तो अपने संवेग और वैराग्य की सिद्धि के लिये वैराग्य भावनाओं का चिन्तन करते-करते अपनी आत्मा की धुन में लीन होकर चले आ रहे थे। आचार्यदेव कहते हैं कि अहो ! ऐसी राग-द्वेषरहित समतावृत्ति को धारण करना ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है। मुनिराज ऋषभदेव राजमहल के सामने पधार रहे हैं यह जानकर -
SR No.032272
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy