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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/७८ अकेली बैठी-बैठी रो रही है। पूर्व का कोई अशुभकर्म का उदय आया, वह फल दिखाकर क्षणमात्र में चला गया और तुरन्त ही शुभयोग से वज्रजंघ राजा वहाँ आया; उसने सीता को अपनी धर्म की बड़ी बहन के रूप में रखा। सीता को लव-कुश पुत्र हुए, उन्होंने राम-लक्ष्मण के साथ लड़ाई की। हनुमान वगैरह सीता को पुन: अयोध्या ले आये, परन्तु राम ने सीता की अग्निपरीक्षा का आग्रह किया। જેના અંતરમાં જિતરાજ બિરાજે 5 એને અગ્નિનો ભય વોર हमेशावला ઉિદય साया बड़े भारी अग्निकुंड में पंच परमेष्ठी का स्मरणपूर्वक सीताजी उसमें कूद पड़ी....और शील का महान प्रभाव जगत में प्रसिद्ध हुआ। अग्नि के स्थान पर जल हो गया। सीता के शील का ऐसा प्रभाव देखकर हनुमान वगैरह खूब प्रसन्न हुए। संसार की विचित्र स्थिति देखकर सीता को महा वैराग्य उत्पन्न हुआ और वे अर्जिका बनने को तैयार हुईं। लव-कुश माँ-माँ करते सीता के चरणों से लिपट गये, राम रोने लगे, प्रजा रोने लगी; परंतु अब सीता को संसार का मोह नहीं रहा था बस, वे तो कोमल केशों का लुंचन
SR No.032254
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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