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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/५९ विद्या के बल द्वारा रचा हुआ यह लंका के चारों तरफ मायामयी कोट मानो सूर्य-चन्द्र से भी ऊँचा है; उसमें बिना विचारे जो प्रवेश करता है, वह मानो अपनी मौत को ही बुलाता है।"
___ हनुमान ने कहा – “जैसे मुनिवर आत्मध्यान द्वारा माया को नष्ट कर डालते हैं, वैसे ही मैं भी अपनी विद्या द्वारा रावण की इस माया को उखाड़ कर फेंक दूंगा।"
- ऐसा कहकर, हनुमान ने सेना को तो आकाश में ही खड़े रखा और स्वयं मायामयी पुतली के मुँह में प्रवेश कर विद्या द्वारा उसका विदारण कर डाला । जैसे मुनिश्वर शुक्लध्यान के प्रहार द्वारा घनघाति कर्म को भी तोड़ डालते हैं, वैसे ही हनुमान ने गदा के प्रहार द्वारा रावण का गढ़ तोड़ डाला।
जैसे जिनेन्द्र भगवान के दर्शन करते ही पाप भाग जाते हैं, वैसे ही हनुमान को देखते ही राक्षस भाग गये। हनुमान के चक्र द्वारा कोटपाल का मरण हुआ; इस कारण उसकी पुत्री लंका सुन्दरी अत्यंत क्रोधपूर्वक लड़ने आ गई। अनेक प्रकार की विद्याओं द्वारा दोनों में बहुत समय तक लड़ाई चली। अद्भुत रूप से गर्वित उस लंका सुन्दरी को कोई जीत नहीं सकता था। वह हनुमान के ऊपर जोरदार बाण चलाने लगी, परन्तु अचानक इस कामदेव का अद्भुत रूप देखकर वह लंका सुन्दरी ऐसी मूर्छित हुई कि स्वयं ही कामबाण से घायल हो गई। विह्वल हो उसने बाण के साथ प्रेम की चिट्ठी बाँधकर उसे हनुमान के चरणों में फेंका, मानो बाण के बहाने वह ही हनुमान की शरण में गई.... हनुमान का हृदय भी उस पत्ररूपी बाण से छिद गया । इसप्रकार पुष्पबाण द्वारा ही दोनों ने एक-दूसरे को वश कर लिया।
अरे, संसारी जीवों की विचित्रता तो देखो! क्षण में रौद्रपरिणाम, क्षण में वीररस, क्षण में एक-दूसरे को मार डालने का तीव्र द्वेष और क्षण में उसके ही ऊपर अत्यंत प्रेम ? उसी प्रकार क्षण में क्रोधरस, क्षण में शांतरस, क्षण में शोक तथा क्षण में हर्ष – ऐसे अनेक परिणामों में जीव