SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/५३ दूसरा तो वहाँ जा ही नहीं सकता और हनुमानजी तो रावण के परममित्र भी है, वे भी उसे समझायेंगे, इसलिए उन्हें ही लंका भेजिए । " ऐसा निर्णय होते ही तुरन्त हनुमानजी को बुलाने दूत भेजा गया। दूत श्रीपुरनगर पहुँचा, वहाँ नगरी की शोभा देखते ही वह आश्चर्य चकित हो गया । दूत ने राजमहल में आकर हनुमान और अनंगकुसुमा को सभी बात बताई। अनंगकुसुमा रावण की भानजी थी। उसके पिता और भाई को (खरदूषण और शंबुक को ) लक्ष्मण ने मारा है - ये सुनते ही वह मूर्छित हो गई और हनुमान को भी लक्ष्मण पर क्रोध आया, परन्तु दूत ने उसे शांत करके सभी बात बताई की किसप्रकार सुग्रीव का संकट दूर करके उसका राज्य तथा उसकी पत्नि सुतारा श्री राम-लक्ष्मण ने वापिस दिलाई है। – ये सुनकर हनुमान प्रसन्न हुए । ( खरदूषण के समान सुग्रीव भी हनुमान के ससुर हैं एक को लक्ष्मण ने मारा, दूसरे को राम ने बचाया ।) -― तब हनुमान ने कहा - "सुग्रीव का दुःख मिटाकर राम ने हमारे ऊपर बड़ा उपकार किया है । इसप्रकार हनुमान ने परोक्षपने राम की बहुत प्रशंसा की । सुग्रीव की पुत्री पद्मरागा 'पिता का दुःख मिट गया' - यह जानकर हर्षित हुई । " एक ही राजा की दो रानियाँ ! उसमें एक रानी के यहाँ पिता के मरण का शोक और दूसरी रानी के यहाँ पिता की विजय का उत्सव ! कैसा विचित्र है संसार ! ऐसे संसार के बीच रहते हुए भी अपने चरित्र नायक की ज्ञानचेतना अलिप्त ही रहती है.... वे मोक्ष के लक्ष्य को कभी भूलते नहीं । धन्य है, इन चरमशरीरी धर्मात्माओं को ! श्री राम और हनुमान का मिलन - हनुमान राम की सहायता के लिए तुरंत किष्किंधापुर चले । अन्य कितने ही विद्याधर राजा भी हनुमान के साथ बड़ी सेना लेकर आकाशमार्ग से चले। हनुमान के विमान की ध्वजा में बन्दर का चिह्न शोभता है । • सुग्रीव महाराजा ने नगरी सजा कर हनुमान का स्वागत किया । हनुमान श्री राम के पास आ पहुँचे। एक चरमशरीरी जीव के पास दूसरे
SR No.032254
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy