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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/५२ किया और शिला की तीन प्रदक्षिणा दीं। लक्ष्मण ने पंचपरमेष्ठी को याद करके सिद्धों की स्तुति की। __“अहो भगवंतो ! आप तीन लोक के शिखर पर चैतन्य की अतीन्द्रिय सत्ता से शोभ रहे हो। आप संसार से पार, आनन्द के पिंड, पुरुषाकार, अमूर्त तथा एक समय में सबको जानने वाले हो; राग-द्वेष से रहित आप मुक्त हो। आपके भाव सम्पूर्णतः शुद्ध हैं। इस ढाई-द्वीप में अनंत जीव सिद्ध हुए हैं और अनन्तजीव सिद्ध होंगे। मंगल स्वरूप ऐसे सभी सिद्ध भगवान मेरा कल्याण करें।"
इसप्रकार स्तुति करके लक्ष्मण ने कोटिशिला को घुटनों पर्यंत ऊँची उठाई। देवों ने जय जयकार किया। विद्याधर लक्ष्मण की ताकत देखकर आश्चर्य चकित हुए। इसप्रकार कोटिशिला की यात्रा करके, वहाँ से सम्मेदशिखर और कैलाश पर्वत आदि सिद्धक्षेत्रों तथा भरतक्षेत्र के सभी तीर्थों की यात्रा की। तब विद्याधर राजा समझ गये कि अब थोड़े ही समय में तीन खण्ड में राम-लक्ष्मण का राज्य होगा; इसलिए सभी उनकी सेवा करने लगे और सीता को वापिस लाने के लिए क्या करना चाहिये - ये विचारने लगे।
तब राम ने कहा – “हे राजाओ ! अब किस बात के लिए ढील कर रहे हो ? मेरे विरह में सीता अकेली लंका में महादुःखी हो रही होगी; इसलिए जल्दी उपाय करो और रावण के साथ युद्ध करने चलो।"
तब मंत्रियों ने राम को समझाया – “हे देव ! अपने को तो सीता मिल जाये - ये प्रयोजन है, युद्ध का प्रयोजन नहीं। तीन खंड का राजा रावण महा बलवान है, उसे जीतना अति कठिन है, इसलिए युद्ध के बिना ही सीताजी वापिस मिल जाये - ऐसा उपाय कीजिए। रावण का भाई विभीषण श्रावक व्रत का धारक धर्मात्मा है, दोनों भाईयों में अतिप्रेम है, उसका वचन रावण नहीं टाल सकता, उसके कहने से वह अवश्य सीता वापिस सौंप देगा। इसलिए हम कुशल दूत को लंका भेजें, परन्तु लंका का मायामयी कोट'अलंघ्य है। अत: महा शक्तिशाली हनुमान के अलावा