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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/३८. अहो ! देखो तो सही जैनधर्म का प्रभाव !! गिद्ध जैसे क्रूर, . माँसाहारी पक्षी ने भी मुनि के संग में जैनधर्म प्राप्त कर लिया और अद्भुत रूपवान बन गया। वाह रे वाह ! साधर्मी ! भले ही तू तिर्यंचगति से हो तो भी धर्मात्माओं को तेरे ऊपर प्रेम आता है। तेरी अद्भुत दशा देखकर वन के दूसरे पशु-पक्षी भी आश्चर्य पाते हैं। अहो, जैन मुनियों की जिस पर कृपा हुई, उसके महाभाग्य की क्या बात ? __लक्ष्मण को सूर्यहास खड्ग की प्राप्ति - रामलक्ष्मण ने दंडकवन में वास किया। एकबार लक्ष्मण वन की शोभा देखने निकले; वहाँ एकाएक आश्चर्यकारी सुगंध आई....जहाँ से सुगंध आ रही थी, वहाँ जाकर देखा तो एक अद्भुत 'सूर्यहास' तलवार चमक रही थी। रावण की बहन चन्द्रनखा और उसके पुत्र शंबुक ने १२ वर्ष की विद्या साधना द्वारा ये दैवी ‘सूर्यहास' तलवार सिद्ध की थी, परन्तु यह सिद्ध हुई कि इतने में ही लक्ष्मण ने आकर उसे हाथ में लेकर उसकी तीक्ष्ण धार को देखने हेतु उसे बाँस के बीड़े (समूह) के ऊपर चलाया, जिससे उस बाँस के बीड़े (समूह) के बीच में स्थित शंबुक का शिर भी छिद गया। अरे देव ! विद्या द्वारा तलवार साधी किसी ने, हाथ में आई किसी दूसरे के। बारह वर्ष की तपस्या द्वारा सिद्ध हुई तलवार स्वयं के ही घात का कारण बनी....अरे ! तलवार को साधने के बदले आत्मा को साधा होता तो कैसा उत्तम फल पाता। रावण के पास ‘चंद्रहास खड्ग' था, उसके सामने लक्ष्मण को यह ‘सूर्यहास खड्ग' प्राप्त हुआ। देखो, पुण्य प्रभाव ! बिना साधे भी पुण्य-प्रताप से उसे यह सूर्यहास तलवार हाथ आ गई और हजारों देव उसे वासुदेव जानकर उसकी सेवा करने लगे। खरदूषण से लड़ाई - शंबुक का पिता खरदूषण उस समय समुद्र के बीच दूसरी पाताल लंका का स्वामी था। शंबुक के मरण की बात सुनते ही उसे क्रोध आया और वह तुरन्त आकाशमार्ग से १४,००० राजाओं सहित दंडकवन में आया। सेना के भयानक शब्दों को
SR No.032254
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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