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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/३७ पर्वत पर विराजमान देशभूषण-कुलभूषण मुनिराजों के ऊपर का देवकृत भयानक उपसर्ग दूर किया, उन मुनियों को केवलज्ञान प्राप्त हुआ, मुनिवरों को केवलज्ञान होते ही राम-लक्ष्मण ने ऐसी अद्भुत भक्ति की, कि सीता भी आनन्द से नाच उठी-ऐसी अद्भुत जिन-महिमा देख कर हजारों जीव आश्चर्य चकित हो गये तथा बहुत से जीवों ने सम्यग्दर्शन प्राप्त किया। गिद्ध पक्षी जटायु को धर्म प्राप्ति - देशभूषणकुलभूषण मुनियों का उपसर्ग दूर कर तथा उनकी भक्ति करके राम, लक्ष्मण और सीता नर्मदा किनारे आये, वहाँ गुप्ति-सुगुप्ति नाम के आकाशगामी मुनियों को परम भक्ति से आहारदान कराया। उस समय अतिशयवंत मुनियों को देखकर एक गिद्ध पक्षी को जाति-स्मरण हुआ, वह वृक्ष के नीचे विराजमान मुनिराज के चरणों में पड़ गया। ऋद्धिधारी मुनिराज की चरण-धूल के प्रताप से उस पक्षी का शरीर रत्न-समान अत्यंत तेजस्वी बन गया; आश्चर्य को प्राप्त वह पक्षी आनन्दमय अश्रु सहित, पंख पसार कर मुनिराज के समीप मोर की तरह नाचने लगा। अहो, माँसाहारी पक्षी भी जिनमुनि की शरण में आते ही अत्यन्त शान्त बन गया, उसे जातिस्मरण हुआ और उसके परिणाम निर्मल हुये। .. वे गुप्ति और सुगुप्ति दोनों मुनि वाराणसी नगरी के राजकुमार थे; वे वैराग्य पाकर मुनि हुये थे, गिद्ध पक्षी ने मुनिराज से धर्मोपदेश सुनकर श्रावक के व्रत लिये तथा हिंसादि पापों का त्याग किया; अभक्ष्य छोड़ दिया और बारम्बार पैर ऊँचे करके चोंच हिलाकर मुनियों की वंदना करने लगा। इस तरह गिद्ध पक्षी ने श्रावक धर्म अंगीकार किया। ये देखकर सीता अति प्रसन्न हुई तथा वात्सल्यभाव से उसने खूब प्रीतिभाव जताया। मुनिराज भी जाते-जाते समझा गये कि इस भयानक वन में क्रूर जीव बसते हैं, इसलिए आप इस सम्यग्दृष्टि पक्षी की रक्षा करना, पक्षी को जिनधर्मी जानकर राम-लक्ष्मण-सीता उसके प्रति धर्मानुराग करने लगे, सीताजी तो माता समान उसका पालन करती थीं।
SR No.032254
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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