________________
जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/३६
राम का वन-प्रवास उसके बाद वन-प्रवास में राम, लक्ष्मण और सीता ने कैसी-कैसी परिस्थितियों का सामना किया। इन सबका वर्णन करने वाली रामकथा का अब यहाँ संक्षेप में वर्णन किया जा रहा है।
राम, लक्ष्मण और सीता अयोध्या के बाहर भी आनंदपूर्वक विहार करते हैं। जहाँ जाते हैं, वहाँ पुण्य के प्रभाव से उनका अद्भुत् रूप देखकर सभी सन्मान करते हैं। राम-लक्ष्मण के साथ होने के कारण चाहे जितने भयंकर वन में भी कोमलांगी सीता को कभी डर नहीं लगता। वे सभी नये-नये तीर्थों के दर्शन कर आनन्दित होते हैं। वीतरागी मुनिवरों के दर्शन होते ही भक्ति करते हैं, धर्मोपदेश सुनते हैं, आपस में धर्म चर्चा भी करते हैं। अहा, अयोध्या के राजपुत्र वन-विहारी मुनियों जैसे विचरण कर रहे हैं। वहाँ उन्हें अच्छे-बुरे अनेक प्रसंग देखने मिलते हैं, जिनका वे अपने बुद्धि, बल एवं विवेक से निराकरण करते हैं।
वजकरण का भय निवारण-मालव देश के दशांगनगर के राजा वज्रकरण ने ऐसी प्रतिज्ञा की, कि जिनदेव, जिनमुनि और जिनवाणी के अतिरिक्त मैं किसी को भी नमस्कार नहीं करूँगा। उज्जैनपति सिंहोदर राजा उसे अन्यत्र नमाने के लिए उसके ऊपर घेरा डालकर नगर को उजाड़ रहा था, तब जिनधर्म के प्रति परम वात्सल्यधारी राम-लक्ष्मण ने सिंहोदर राजा को जीतकर वज्रकरण की रक्षा की और अपना साधर्मी प्रेम बतलाया तथा उन दोनों राजाओं को एक दूसरे का मित्र बना दिया, इसप्रकार वे देशाटन करते हुए बीच में अनेक राजाओं का निग्रह करके सज्जनों के ऊपर उपकार करते हैं, मुनिवरों या धर्मात्माओं के ऊपर हो रहे उपसर्ग को दूर करते हैं। अद्भुत पुण्य-प्रताप से उन्हें सर्वत्र सफलता मिलती है। महापुरुष महल में हों या वन में, परन्तु उनका पुण्य-प्रताप छिपा नहीं रहता।
- मुनिवरों का उपसर्ग निवारण - विचरण करते हुए राम-लक्ष्मण वंशस्थल नगर के समीप आये और उसके पास वंशधर