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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - ५ -५/२९ लड़ाई के ठीक मौके पर आकर हनुमानजी ने रावण की रक्षा की, इससे रावण उसके ऊपर बड़ा खुश हुआ अतः उसने अपनी भानजी ( खरदूषण की पुत्री) अनंगकुसुमा के साथ विवाह कर उसे कर्णकुंडलपुर नगरी का राज्य उसको दिया । जैसे भरत चक्रवर्ती के भाई बाहुबली प्रथम कामदेव थे, वैसे ही बजरंगबली हनुमान भी आठवें कामदेव थे, उनका रूप बेजोड़ था; पवनकुमार नाम के विद्याधर राजा और अंजना सती के वे पुत्र थे; उस राजपुत्र की ध्वजा में कपि (बंदर) का निशान था । जैसे बाहुबली कामदेव होने से अद्भुत रूपवान थे; अनेक रानियाँ, पुत्र-पुत्रियाँ, राज परिवार वगैरह विशिष्ट पुण्य वैभव था; वैसे ही हनुमान कामदेव थे, उनका भी विशिष्ट पुण्य वैभव था । बाहुबली तथा हनुमान दोनों कामदेव होने पर भी निष्काम आत्मा को जाननेवाले थे, चरमशरीरी थे, आत्मा के ब्रह्मस्वरूप के ज्ञानपूर्वक अन्त में राजपाट, रानियाँ आदि सभी को छोड़कर, परमब्रह्मस्वरूप निजात्मा में लीनता द्वारा मोक्षपद को प्राप्त हुये । वरुण से युद्ध करके वापिस आते समय वह पर्वत भी बीच में आया तथा वह वन और वह गुफा भी आई कि जिसमें वनवास के समय अंजना रहती थी, हनुमान उसे देखने के लिए नीचे उतरे और माता के वनवास के समय का निवासस्थान देखकर उन्हें बहुत वैराग्य जागृत हुआ । अहा, यहीं इसी वन में और इसी गुफा में मेरी माता रहती थी । इस गुफा में विराजमान
SR No.032254
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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