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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/१५
बालक खेल रहा है । सभी विनोद कर रहे हैं कि तभी अचानक....कौतूहल से हँसते-हँसते वह बालक माता की गोद से उछलकर नीचे पर्वत पर जा गिरा। बालक के गिरते ही उसकी माता अंजना हाहाकार करने लगी । राजा प्रतिसूर्य ने भी तत्काल विमान को पृथ्वी पर उतार दिया ।
उस समय अंजना के दीनता पूर्वक विलाप के स्वर सुनकर जानवरों के हृदय भी करुणा से द्रवित हो उठे.
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“हा पुत्र ! यह क्या हुआ । अरे ! यह भाग्य का खेल भी कितना निराला है, पहले तो मुझे पुत्र रूपी रत्न से मिलाया और पश्चात् मेरे रत्न काही हरण कर लिया । हा ! कुटुम्ब के वियोग से व्याकुलित मुझ दुखिया का यह पुत्र ही तो एक मात्र सहारा था, यह भी मेरे पूर्वोपार्जित कर्मों ने मुझसे छीन लिया । हाय पुत्र, तेरे बिना अब मैं क्या करूँगी।"
इसप्रकार इधर तो अंजना विलाप कर रही थी और उधर पुत्र हनुमान जिस पत्थर की शिला पर गिरा था, उस पत्थर के हजारों टुकड़े हो गये थे, जिसकी भयंकर आवाज को सुनकर राजा प्रतिसूर्य ने वहाँ जाकर देखा तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा।
"क्या देखा उन्होंने ?"
उन्होंने देखा कि बालक तो एक शिला पर आनंद से लेटा हुआ मुँह में अपना अँगूठा लेकर स्वतः ही क्रीड़ा कर रहा है, मुख पर मुस्कान की रेखा स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही है, अकेला पड़ा पड़ा ही शोभित हो रहा है । अरे ! जो कामदेव पद का धारक हो, उसके शरीर की उपमा किससे दी जावे, उसका शरीर तो सुन्दरता में अनुपम होगा ही ।
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दूर से ही बालक की ऐसी दशा देखकर राजा प्रतिसूर्य एवं अंजना को अपूर्व आनंद हुआ। अंजना ने अत्यन्त स्नेहपूर्वक उसके सिर पर चुंबन अंकित किया और छाती से लगा लिया ।
राजा प्रतिसूर्य ने अपनी पत्नी सहित बालक की तीन प्रदक्षिणा की