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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/१६ तथा हाथ जोड़कर सिर झुकाकर नमस्कार किया। तत्पश्चात् पुत्र सहित अंजना को अपने विमान में बैठाकर अपने नगर की ओर प्रस्थान किया। राजा के शुभागमन के शुभ समाचारों को सुनकर प्रजाजनों ने नगर का श्रृंगार किया और राजा सहित सभी का भव्य स्वागत किया। दशों दिशाओं में वाद्य-वाजिब के नाद से उन विद्याधरों ने पुत्र-जन्म का भव्य महोत्सव मनाया। जैसा उत्सव स्वर्ग लोक में इन्द्र-जन्म का होता है, उससे किसी तरह यह उत्सव कम नहीं था। चरम शरीरी जीव हमेशा वज्र संहनन वाले होते हैं, हनुमान भी व्रजशरीरी होने से वज्र-अंग' कहलाये। वज्र अंगशब्द से भाषा परिवर्तित होते-होते ‘बज्जर-अंग' शब्द हो गया और अंत में 'बजरंग' शब्द हनुमानजी के लिए प्रसिद्ध हो गया। ___उसी प्रकार पर्वत में (गुफा में) जन्म हुआ और विमान से गिरने पर पर्वत के शिला को खण्ड-खण्ड कर दिया, अत: उस बालक की माता एवं मामा ने उसका नाम 'शैलकुमार' रखा तथा हनुमत द्वीप में उसका जन्मोत्सव आयोजित होने के कारण जगत में वह 'हनुमान' नाम से विख्यात हुआ। इस प्रकार शैलकुमार अथवा हनुमानकुमार हनुमत द्वीप में रहते हुए समय व्यतीत करने लगे। देव सदृश प्रभा के धारी उन हनुमानकुमार की चेष्टायें सभी के लिये आनंददायिनी बनी हुई थीं। माता अंजना के साथ बालक हनुमान की चर्चा महान पुण्यवंत और आत्मज्ञानी-धर्मात्मा ऐसा वह बालक 'हनुमत' नाम के द्वीप में आनंद के साथ रह रहा है। अंजना माता अपने लाड़ले बालक को उत्तम संस्कार देती हैं और बालक की महान चेष्टाओं को देखकर आनंदित होती हैं। ऐसे अद्भुत प्रतापवंत बालक को देखकर वे जीवन के सभी दुःखों को भूल गई हैं, तथा आनंद से जिनगुणों में चित्त
SR No.032254
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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