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________________ जैनधर्म की कहानियां भाग-५/११ ॥ श्री मुनिसुव्रत तीर्थंकर देवाय नमः। तद्भव मोक्षगामी हनुमान की कथा जैनधर्म के बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत भगवान मोक्ष पधारे, उसके बाद उनके शासन में श्री रामचन्द्र, श्री हनुमान वगैरह अनेक महापुरुष मोक्षगामी हुए; उनमें से श्री हनुमान की यह कथा है। मोक्षगामी भगवान हनुमान की माता सती अंजना थी। यह अंजना पूर्वभव में एक राजा की पटरानी थी, तब अभिमान से उसने जिनप्रतिमा का अनादर किया था; उस कारण इस भव में अशुभ कर्म के उदय से उस पर कलंक लगा और उसका अनादर हुआ। प्रथम तो उसके पति पवनकुमार उसके ऊपर नाराज हो गये। पीछे सास तथा पिता ने भी उसे कलंकित समझकर घर से निकाल दिया, इस कारण वह सखी के साथ वन-जंगल में रहने लगी, जंगल में मुनिराज के दर्शन कर उसका चित्त धर्म में स्थिर हुआ, अंजना ने जंगल में ही वीर हनुमान को जन्म दिया। हनुमान के पूर्वभव जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के मंदिरनगर में प्रियनन्दि नामक एक गृहस्थ था, उसके ‘दमयन्त' नामक एक पुत्र था। एकबार वह वसंतऋतु में अपने मित्रों के साथ वन-क्रीड़ा के लिये वन में गया, वहाँ उसने एक मुनिराज को देखा; जिनका आकाश ही वस्त्र था, तप ही धन था और जो निरन्तर ध्यान एवं स्वाध्याय में उद्यमवंत थे- ऐसे परम वीतरागी मुनिराज को देखते ही दमयन्त अपनी मित्र-मण्डली को छोड़कर श्री मुनिराज के समीप पहुँच गया, मुनिराज को नमस्कार कर वह उनसे धर्म-श्रवण करने लगा। मुनिराज के तत्त्वोपदेश से उसने सम्यग्दर्शन की प्राप्ति की और श्रावक के व्रतों एवं अनेक प्रकार के नियमों से सुशोभित होकर घर आया। तत्पश्चात् एकबार उस कुमार ने दाता के सात गुण सहित मुनिराज
SR No.032254
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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