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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-३/४८ वैरागी गजकुमार ने भगवान नेमिनाथ की आज्ञापूर्वक दिगम्बरी दीक्षा धारण की। उनकी अनंत आत्मशक्ति जागृत हो गयी। मुनि गजकुमार चैतन्य ध्यान में तल्लीनता पूर्वक महान तप करने लगे। उनके साथ जिनकी सनाई हुई थी, उन राजकन्याओं को उनके माता-पिता ने बहुत समझाया कि अभी तुम्हारा विवाह नहीं हुआ, इसलिए तुम दूसरी जगह अपना विवाह करा लो, लेकिन उन उत्तम संस्कारी कन्याओं ने दृढ़तापूर्वक कहा "नहीं, पिताजी ! मन से एक बार जिसे पतिरूप स्वीकार किया, उनके अलावा अब कहीं दूसरी जगह हम विवाह नहीं करेंगे। जिस कल्याण मार्ग पर वे गये हैं, उसी कल्याण मार्ग पर हम भी जावेंगे। उनके प्रताप से हमें भी आत्महित करने का अवसर मिला।" इस प्रकार वे कन्याएँ भी संसार से वैराग्य प्राप्त कर दीक्षा लेकर अर्यिका बनी ! धन्य आर्य संस्कार ! मुनिराज गजकुमार श्मशान में जाकर अति उग्र पुरुषार्थ पूर्वक ध्यान करते थे। इसी समय सोमिल सेठ वहाँ shmm आया। “मेरी पुत्री को इसी गजकुमार ने तड़फाया है।" - ऐसा विचार वह अत्यन्त क्रोधित हुआ। “साधु होना था तो फिर मेरी पुत्री के साथ सगाई क्यों की ? दुष्ट ! तुझे मैं अभी मजा चखाता हूँ।" -इस प्रकार क्रोधपूर्वक उसने गजस्वामी मुनिराज के मस्तक पर मिट्टी का पाल बाँधकर उसमें अग्नि जलाई। मुनिराज का मस्तक जलने 13 -TVA
SR No.032252
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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