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________________ योगबिंदु १. बहिरात्मा :- पाप में जो रचा - पचा रहता है । सांसारिक भोग विलास, पुत्रेषणा, वित्तेषणा, कौटुम्बिक मोहजाल में फंसा रहता है उसी में आनंद मानता है और आत्मा के लिये जो जरा सा भी विचार नहीं करता उसे बहिरात्मा कहते हैं । २८ २. अन्तरात्मा :- काया का जो साक्षीधर आत्मा है। उसके लिये ही जिसकी सारी ( प्रयत्न) साधना है | सच्चे साधक की अन्तर्मुख अवस्था को अन्तरात्मा कहा है I ३. परमात्मा :- बहिरात्मभाव को छोड़कर और अन्तर्मुख भाव में स्थिर होकर अन्त में जो आत्मा की पूर्व स्थिति - निर्वाणत्व प्राप्त करना, परमात्मा कहा जाता है । इस प्रकार बहिरात्मभाव को छोड़कर, आत्मस्वरूप का जो आन्तर उपयोग है वह अध्यात्म योग है। श्री आनंदघनजी महाराज ने श्री सुमतिनाथ भगवान के स्तवन में इस बात के बहुत सुन्दर तरीके से गूंथा है : त्रिविध सकल तनुधरगत आतमा, बहिरातम धुरि भेद सुज्ञानी; बीजो अंतर आतम, तीसरो परमातम अविच्छेद् सुज्ञानी । आतम बुद्धे हो कायादिक ग्रह्यो; बहिरातम् अघरूप सुज्ञानी; कायादिकनो हो साखीधर रह्यो; अन्तरातम रूप सुज्ञानी । ज्ञानानन्दे हो पूरण पावनो, वर्जित सकल उपाधि सुज्ञानी; अतीन्द्रिय गुणगणगणि आगरु, एम परमातम साध सुज्ञानी । संक्षेप में काया को आत्मा समझने वाला पापरूप आत्मा बहिरात्मा है, आत्मा को जो काया का साक्षीधर मानता है ऐसी अन्तर्मुखी रहने वाली आत्मा की स्थिति अंतरात्मा कही जाती है और जब वह कृतकृत्य हो जाता है अनन्त ज्ञान, दर्शन और केवलज्ञान की प्राप्ति हो जाती है, पूर्ण आनन्दमयी आत्मा परमात्मा कही जाती हैं। इस प्रकार आत्मा के सम्बन्ध में विचार करना, समझना भी अध्यात्म है, क्योंकि आचार की आधारशिला विचार है । सर्वप्रथम विचार आता है । बाद में वह आचार में आता है । इसलिये योग में सर्व प्रथम अध्यात्म को स्थान दिया है । वस्तु का स्वरूप समझने पर ही उसे पाने की अभिलाषा-आकांक्षा पैदा होती हैं । दूसरा स्थान भावना का आता है। भावना १२ हैं । वे भी जीवन में उपयोगी है इसलिये उनका भी संक्षिप्त परिचय दिया जाता : भावना :- आत्मा को उन्नत कोटि में लाने के लिये जो विचार करना है वह भावना कही जाती हैं । भावना की संख्या आगमों में १२ बताई है ।
SR No.032246
Book TitlePrachin Stavanavli 23 Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukhbhai Chudgar
PublisherHasmukhbhai Chudgar
Publication Year
Total Pages108
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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