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________________ २७ योगबिंदु विरमणरूपेऽर्थे" हिंसा, असत्य, चौर्य, मैथुन, परिग्रह इन पांच पापों का त्याग करना-इसे जैन 'व्रत' कहते हैं और इसी चीज को पातञ्जलदर्शन एवं सांख्य में 'यम' नाम दिया है । यहाँ 'व्रत' और 'यम' दोनों में मात्र उक्तिभेद के सिवाय कुछ भेद नहीं है । ध्येय में अभेद है, इसलिये बुद्धिमानों को मान्य है ॥२९॥ मुख्यतत्त्वानुवेधेन, स्पष्टलिंगान्वितस्ततः । युक्तागमानुसारेण, योगमार्गोऽभिधीयते ॥३०॥ अर्थ : मुख्य तत्त्व के अनुसार स्पष्टलिंग-स्पष्ट लक्षण सहित युक्ति और आगम के अनुसार योगमार्ग का निरूपण कर रहे हैं ॥३०॥ विवेचन : मुख्य तत्त्व-आत्मा का नित्यानीत्यत्वरूप जो मुख्य तत्त्व है, उसको ध्यान में रखकर, अन्यदर्शनों में और योगशास्त्रों में भी योग सम्बन्धी आत्मा-कर्म आदि के विषय में जो चर्चा आती है, प्रत्यक्ष-प्रमाण से, अनुमान प्रमाण से, आगम प्रमाण से तथा तर्क-युक्ति प्रयुक्ति से खूब कसौटी करके, मीमांसा पूर्वक मोक्षमार्गरूप-योगमार्ग का निरूपण करते हैं । ग्रंथकार कहना चाहते हैं कि जो पदार्थ जितना मूल्यवान होता है उतनी ही उसकी कसौटी ज्यादा होती है और करनी पड़ती है, क्योंकि सामान्य घट-पट लाते समय भी मनुष्य परीक्षा करके ग्रहण करता है तो मोक्षरूप ऐसे उच्च ध्येय के लिये आधाररूप आत्मा के नित्यानीत्यत्व की कसौटी करना नितान्त आवश्यक है ॥३०॥ अध्यात्म भावना ध्यानं समता वृत्तिसंक्षयः । मोक्षेण योजनाद्योग, एष श्रेष्ठो यथोत्तरम् ॥३१॥ अर्थ : अध्यात्म, भावना, ध्यान, समता, वृत्ति-संक्षय । ये पाँचो मोक्ष के साथ जोड़ते हैं इसलिये ये पांचों योग हैं और उनमें उत्तरोत्तर श्रेष्ठता है ॥३१॥ विवेचन : "मोक्षेण योजनात् योगः" । जो क्रिया मोक्ष के साथ हमको जोड़ दे वह योग है। योग शब्द का व्युत्पत्ति अर्थ यह है । ग्रंथकार ने यहाँ इसी व्युत्पत्ति को ही प्रधानता देकर, योग पांच प्रकार का बताया है अध्यात्म, भावना, ध्यान, समता और वृत्ति-संक्षय । इन पांच भेदों में भी उत्तरोत्तर योग श्रेष्ठता है याने अध्यात्म से भावना, भावना से ध्यान, ध्यान से समता और समता से भी वृत्तिसंक्षय सर्वोत्कृष्ट बताया है। योग के ये पांच प्रकार आत्मा को सर्व बन्धनों से मुक्त करके, मोक्ष की तरफ ले जाते हैं इसलिये यह श्रेष्ठ योग है । इन पांचों योगों का संक्षिप्त परिचय जीवन में उपयोगी होने से यहाँ दिया है । अध्यात्म :- आत्मा की तीन अवस्थाएं बताई हैं । बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा।
SR No.032246
Book TitlePrachin Stavanavli 23 Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukhbhai Chudgar
PublisherHasmukhbhai Chudgar
Publication Year
Total Pages108
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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