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________________ योगबिंदु होता है; परन्तु कारण बिना अकस्मात् अनुभव नहीं होता / इसलिये यह सिद्ध होता है कि जो भी कार्य होते हैं वे निश्चय ही जीव को और पुद्गल के स्वभाव के अनुसार दोनों के संयोग-सम्बन्ध से होते हैं / इससे सिद्ध हुआ कि जीव को संसार में भ्रमण करने का कारण अनादि कालीन है और जीव तथा कर्म पुद्गल का संयोग सम्बन्ध रूपी स्वभाव, जीव को अनन्तपुद्गलपरावर्त काल पर्यन्त संसार में रखता है। भवभ्रमणरूप कार्य में स्वभाव की योग्यता ही मुख्य कारण है, उसके कारण ही जीव भटकता है // 76|| चित्रस्यास्य तथाभावे, तत्स्वाभाव्याहते परः / न कश्चिद्धतुरेवं च, तदेव हि तथेष्यताम् // 77 // अर्थ : इस चित्र प्राणी के (अनन्त पुद्गलपरावर्त रूप कार्य के) तथा भाव में (वैसे होने में) उसके स्वभाव (की योग्यता) के बिना दूसरा कोई कारण नहीं, इसलिये ऐसा ही अंगीकार करें // 77 // विवेचन : अनन्त पुद्गलपरावर्तन = अनन्त संसार में भटकते हुये प्राणी को विचित्र प्रकार की आकृतियों और गतियों के विचित्र अनुभव, कर्मपुद्गल एवं उसके अपने स्वभाव की योग्यता के कारण होते हैं; इसमें दूसरा कोई कारण नहीं / परिणाम पाना उसका स्वभाव है / जीव अपने अच्छे परिणामों-अध्यवसायों से अच्छी गति में जाता है और बुरे परिणामों - अध्यवसायों से खराब गति होती है। अच्छा या बुरा बनना उसके अपने स्वभाव पर निर्भर है। स्वभाव की इस योग्यता को स्वीकारें, क्योंकि जो जीव जिस रूप में होता है, उसमें उसके स्वभाव के अतिरिक्त अन्य कोई कारण नहीं है / / 77 // स्वभाववादापत्तिश्चेदत्र को दोष उच्यताम् / तदन्यवादाभावश्चन्न तदन्याऽनपोहनात् // 78 // अर्थ : यदि स्वभाववाद में आपत्ति कहो, तो उसमें क्या दोष है ? अगर (स्वभाववाद की स्वीकृति से) अन्यवादों का अभाव कहो, तो वह भी नहीं है, क्योंकि इससे अन्यवादों का निषेध नहीं है // 78|| विवेचन : उपरोक्त श्लोक में ग्रंथकार ने स्वभाव की योग्यता को अंगीकार किया है। इस पर अन्य कोई शंका उठाता है कि अगर सभी में स्वभाव कारण है तो स्वभाववाद ही स्वीकारना पड़ेगा तो उसे कहते हैं कि स्वभाववाद स्वीकार करने में दोष क्या है ? हानि-नुकसान क्या है ? कोई दोष नहीं / अगर आप ऐसा कहें कि स्वभाववाद स्वीकार करने से अन्य वाद - काल, नियति, पुरुष-प्रयत्न आदि का अभाव हो जाता है तो उनका समाधान करते हुए ग्रन्थकार कहते हैं कि -
SR No.032246
Book TitlePrachin Stavanavli 23 Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukhbhai Chudgar
PublisherHasmukhbhai Chudgar
Publication Year
Total Pages108
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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