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________________ कर्ता : श्री पूज्य ऋषभसागरजी महाराज सखी ! मोंनै देखण देई ! मोरो मन मोह्यो ईण मूरति करवा जनम पवित्र, जोईस प्रभु सुरति...(१) प्रकट्यो पूरव नेह, अटक्यो मन छुटै नहीं भटक्यो भव भव मांही, पुण्य योगिं पायो कही...(२) लगीय कमलस्युं प्रीति, सो क्युं राचई धतुरसो आणंददायक देव, पर भीजै प्रेम पूरस्यु...(३) भेट्यां भांजै भूख, दुःख मिटै सहु देहना संवर-सुतनई छोडि, मणावडा हो जे केहना...(४) अणदीठा अकुलाय दीठां दुरि हुवै न सकई मनमोहन जिनराज, पखंई रहे छंई के...(५) देखी ! सखी ! प्रभु देह, लजित लावनिमा लहलहै सास अनै परसेव, पुष्प परागज्युं महमहे...(६) अभिनंदन ! अवधारि, पारथना ए लहलहै। जो प्रभु ! धरस्यो चित्त, तो सघळी वातां सहसहै...(७) पूरा छो परमेश, पूराही सुख दीजीयै ऋषभसागर कहे स्वामी, बिरूद वडाई लिजीयै...(८)
SR No.032220
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHasmukh Chudgar
PublisherHasmukh Chudgar
Publication Year
Total Pages384
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size27 MB
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