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________________ हर श्वासने उच्छवासमा तारूं स्मरण चालू रहो, मुज हृदयना धबकारमां तारूं रटण चालू रहो, मुज नेत्रना हर पलकमां तारूंज तेज रमी रहो, मुज जिंदगीनी हर पलोनो प्राण तुज बनी रहो....॥ अमृत भर्या तुज नयननो आशक बन्यो हुं ज्यारथी, दिव्य ज्योती पामवा, तारा ध्याननी मस्तीगमी, चरणारवींदे रमतु बन्युं, मारूंमन मंदिर थयुं, देवाधिदेव मारा थया आ, शून्यमां सर्जन थयु....॥ बुधवार १) वाणी तमारा गीत गाने आज मनभावन बनी, आंखो तमारं रूप जोता आज अतीपावन बनी; अंगो तमोने नमन करतां आज पाम्या सफलता, मन स्थिर बन्युं तुज ध्यानथी आजे तजी चपलता..॥ मनमा स्मृति मूर्ती नयनमां वचनमा स्तवना रहे, मुज रक्तना हरबंदमां जिनराज तुज आज्ञा वहे; पहोचाडशे मोक्षे मने जिनधर्म ओवी खातरी, प्रभु आटलुं जनमो जनम, देजे मने करूणा करी..॥
SR No.032214
Book TitleSurendra Bhakti Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPiyushbhadravijay, Jyotipurnashreeji, Muktipurnashreeji
PublisherShatrunjay Temple Trust
Publication Year2003
Total Pages68
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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