________________
[२१] आठम पाखी न ओलखी, एम करे शुथाय । उन्मत्त सरखी मांकडी, भोय खणंती जाय ॥५॥ प्रांगण मोती वेरीया, वेले विटाणी वेल । हीरविजय गुरु हीरलो, मारु हेडुरंगनी रेल ॥६॥
१ आदिनाथजी की स्तुति का जोडा (राग-रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीताराम) श्री शत्रुजय मंडण रिसह जिंणद पापतणो उन्मले कंद । मरुदेवी मातानो नंद, ते वंदु मन धरी आनंद ॥१॥ त्रण चोवीशी विहुत्तर जिना, भाव धरी वंदु एक मना। अतीत अनागत ने वर्तमान, तिम अनन्त जिनवर धरो ध्यान ।। जेहमा पंच कह्या व्यवहार, नय प्रमाण तणा विस्तार । तेहना सुनवा अर्थ विचार, जिम होय प्राणी अल्प संसार ।३। श्री जिनवरनी आणा धरे, जग जसवाद घणो विस्तरे । श्रीज्ञान विमलसूरि सानिध्य करे, शासन देवी संकट हरे ॥४॥