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[२०] ३४ श्री चौवीस जिन चैत्यवन्दन आदिनाथ अजितदेव, संभव गुण भंडार । अभिनंदन सुमति नमु, पद्म प्रभ सुखकार ॥१॥ स्वामी सुपार्श्व सोहामणा, चंद्रप्रभु जिनराज । सुविधि शीतल सेविये, श्री श्रेयांस सिरताज ॥२॥ वासुपूज्य विमल विभु अनंत धर्म अरिहंत । श्री शान्ती प्रभु सोलमा,आवे भवनो अंत ॥३॥ कुथु अर संभारतां, दुरित सकल मिट जाय । मुनि सुव्रत नमि नेमिनाथ, आनंद मंगल थाय ॥४॥ पाश्वनाथ त्रेवीशमा, वर्धमान जिन भाण । चौवीशे चित्त धारतां, लहीये क्रोड कल्याण ॥५॥
___३५ उपदेशक चैत्यवन्दन क्रोधे कांई न नीपजे, समकित ते लुटाय । समता रसथी झीलीए, तो वेरि कोई न थाय ॥१॥ वहाला शु वढीए नहीं, छटकी न दीजे गाल । थोडे थोडे छडीए, जिम छंडे सरोवर पाल ॥२॥ अरिहंत सरखी गोठडी, धर्म सरीखो स्नेह । रत्न सरीखां बेसणां, चंपक वर्णी देह ॥३॥ चंपके प्रभुजी न पूजीया, न दीधुमुनि दान । तप करी काया न शोषवी, किम पामशो निर्वाण ॥४॥