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२ आदिनाथजी की स्तुति का जोडा
(राग - त्रिमल केवल ज्ञान कमला, कलित त्रिभुवन हितकरं ) अति सुघट सुंदर गुण पुरंदर, मंदरुप सुधीर । न कर्म कदली दलन दंती, सिंधुसम गंभीर ॥ नाभिराया नंदन वृषभ लंछन, ऋषभ जगदानंद | श्री राजविजयसूरींद तेहना, वंदे पद अरविंद ॥१॥ सुरनाथ सेवित, विबुध वंदित, विदित विश्वाधार । दोय सामला, दोय उजला, दोय नीलवर्ण उदार ॥ जासुद फूल समान दोई, सोल सोवन वान । श्री राजविजयसूरिराज, अहोनिश घरे तेहनु ध्यान ॥ २ ॥ ज्ञान महातम रुप रजनी, वेगे विद्धसन तास । सिद्धान्त शुद्ध प्रबोध उदयो, दिनकर कोडी प्रकाश ॥ पद बंध शोभित तत्व गर्भित, सूत्र पीस्तालीश । अति सरस तेहना अर्थ प्रकाशे, श्रीराजविजयसूरिश ॥३॥ गजगामिनी अभिराम, कामिनी दामीनिसी देह | सादु कमल नयणि विपुल, वयणि चक्केसरी गुणगेह || श्रीराजविजयसूरींद पाये, नित्य नमति जेह |
देह - उदयरत्न वाचक, जैन शासन विघ्न निवारो तेह ||४||