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________________ [१०] लोन में मंदिर की प्रतिष्ठा और ध्वजा-दंड-कलश विगैरा चढ़ाने कि विनंती आई । इस अवसर पर प. पू. आचार्य देवेश चन्द्रसागर सूरीधरजी महाराज तथा परम पूज्य देवेन्द्रसागर सूरीश्वरजी महाराज विगैरा १७ ठाणा रतलाम में विराजमान थे । पिपलोन संघ को प्राचार्य महाराज की विनंती करने भेजा और आप श्री पिपलोन पधारे । मंदिरजी कि प्रतिष्ठा उजमणा विगैरा आनंद पूर्वक करवाया । बहिन फुलकुंवरबाई कि दीक्षा हुई नाम फल्गु श्री रखा। तीसरी शिष्या हुई, इसके बाद विहार करते हुवे देवास आये और संघ ने चौमासा कि विनंती कि सं० १९९२ का चौमासा देवास में हुवा । वहां उपदेश सुनाकर श्रावक-श्राविकाओं को व्रत पच्चखान भगवान कि सेवा पूजा में भव्य आतमाओं को जोड़े । चौमासा पूर्ण होने पर इन्दौर पधारे। यहां से गुजरात तरफ विहार कियो । अहमदाबाद में फल्गुश्रीजी को योग बडी दीक्षा दिलवाकर, गुरु महाराज लिमडी होने से आप श्री लिमडी पधारे । सं० १९६३ का चौमासा लिमडी हुवा । चौमासा पूर्ण होने पर साधीयों को चौमासा करने के लिये गिरीराज कि और बिहार किया अनुक्रमे गिरिराज पहोंचकर १३ ठाणा को नवाणु यात्रा का प्रारंभ किया । सं. १९९४ का चौमाया गिरिराज में हुआ वहां साज़ी के मासखमण सोलभत्ता विगैरे तपस्या व प. पू. आगमोद्धारक की देशना आनंद पूर्वक श्रवण
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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