SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [११] करी । चौमासा संपूर्ण होने पर गुरु महाराज की सेवा में जाने का निश्चय किया और अहमदाबाद कि ओर विहार किया । सं० १९९५ का चौमासा अहमदाबाद गुरुमहाराज के साथ किया । इन्दौर की श्राविकाओं कि आग्रहभरी विनंती होने से गुरुदेव से आज्ञा ली और परम पूज्य रंजनश्रीजी महाराज ने अपनी शिष्या निपुणाश्री जी तथा प्रवीणश्री जी को भी इन्दौर विहार करने कि अाज्ञा दी । गामानुगाम विहार करते हुए चार ठाणा के साथ इन्दौर पधारे । सं० १९६६ का चौमासा इन्द्रपुरी में हुआ यहां पर साधु महाराज का चौमासा नहीं होने से व्याख्यान आदि का लाभ अच्छा मिला। इसके पश्चात परम पूज्य चन्द्रसागर सूरिश्वरजी महाराज सा० की आज्ञा हुई कि तुम उज्जैन चौमासा करके बहिनों को धर्म कार्य में लगाओ वहां भी साधु महाराज का चौमासा नहीं होने पर सं० १९९७ का चौमासा उज्जैन हुआ और व्याख्यान धर्म कार्य का अच्छा लाभ हुआ इसके पीछे गुरु महाराज की आज्ञा हुई कि गुजरात की ओर विहार करो उज्जैन से विहार करके इंदौर पधारे यहां पर केशवलाल भाई नागदीपुर वाला की पुत्र वधू शान्ता बेन कि बहुत दिन से दीक्षा की भावना थी शुभ अवसर देखकर केशवलाल भाई ने दीक्षा देने कि रजा दी। परम पूज्य पन्यासजी मंगल विजयजी महाराज के
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy