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________________ [८६] चारित्र तणे आगार रे लाला || अ० ॥ ४ ॥ हारे लाला अष्टमी आराधन थकी, अष्ट कर्म करे चकचुर रे लाला । नव निधि प्रगटे तस घरे, संपूर्ण सुख भरपूर रे लाला ॥ अ० ॥ ५ ॥ हारे लाला अड द्रष्टि उपजे एहथी, शिव साधे गुण अनुप रे लाला । सिद्धना आठ गुण संपजे, शिव कमला रूप स्वरूप रे लाला । अ० ॥ ६ ॥ ढाल दूसरी जीहो राजगृही रलियामणी, जीहो विचरे वीर जिणंद । जीहो समवसरण इंद्र रच्यु, जीहो सुर असुरनो वृन्द ।। जगत सहु वन्दो वीर जिणंद ॥ १॥ जीहो देव रचित सिंहासने, जीहो बेठा श्री वर्धमान । जिहो अष्ट प्रतिहारज शोभता, जिहो भामंडल अपमान ॥ ज० ॥२॥ जीहो अनंत गुणे जिनराजजी, जीहो पर उपकारी प्रधान । जीहो करुणा सिंधु मनोहरु, जीहो त्रिलोके जिन भाण ॥ ज० ॥ ३ ॥ जिहो चोत्रीश अतिशय विराजता, जीहो वाणी गुण पांत्रीश । जिहो वारे पर्षदा भावशु, जिहो भक्त नमावे शीश ॥ ज० ॥ ४ ।। जीहो मधुर ध्वनि दीए देशना, जीहो जिमरे अषाहोरे मेह । जीहो अष्टमी महिमा वर्ण वे, जीहो जगबन्धु कहे तेह ।। ज० ॥ ५॥ ++++++.
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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