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________________ [ ८८] कलश एम सयल सुखकर सयल दुःखहर, गायो नेमि जिणेसरो । तपगच्छ राजा वड़ दिवाजा, विजयानंद सूरीश्वरो ॥ तस चरण पद्म पराग मधुकर कोविंद कुवर विजय गणी। तस शिष्य पंचमी स्तवन भाखी, गुणविजय रंगे मुनि ।। ४ अष्टमी तिथी का स्तवन के ढालीया दोहा पंच तीर्थ प्रणमु सदा, समरी शारद माय । अष्टमी स्तवन हरखे रचु, सुगुरू चरण पसाय ॥१॥ ढाल पहली हारे लाला जंबुद्वीपना भरतमाँ, मगध देश महंत रे लाला । राजगृही नयरी मनोहरू, श्रेणिक बहु बलवंत रे लाला || अष्टमी तिथी मनोहरू ॥ १ ॥ हारे लाला चेलणा राणी सुन्दरू, शीलवन्ती शिरदार रे लाला । श्रेणिक शुद्ध बुद्ध छाजता, नामे अभय कुमार रे लाला ।।अ०॥२॥हारे लाला वर्गणा आठे मीटे एहथी, अष्ट साधे सुख निधान रे लाला अष्ट मद भंजन वज्र छ, प्रगटे समकित निधान रे लाला ॥ अ० ॥ ३॥ हारे लाला अष्ट भय नासे एहथी, अष्ट बुद्धि तणो भंडार रे लाला । अष्ट प्रवचन माता संपजे,
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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