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________________ [६०] ढाल तीसरी रुडी ने रढियाली प्रभु तारी देशनारे, ते तो एक जोजन लगे संभलाय | त्रिगड़े विराजे जिन दीए देशना रे, श्रेणिक वन्दे प्रभुना पाय ।। अष्टमी महिमा कहो कृपा करी रे, पूछे गोयम अणगार । अष्टमी आराधन फल सिद्धिनु रे ॥१॥ वीर कहे तपथी महिमा एहनो रे, ऋषभ जन्म कल्याण । ऋषभ चारित्र होय निर्मलु रे, अजितनु जन्म कल्याण ॥ अ० ॥ २॥ संभव च्यवन त्रीजा जिनेश्वरु रे, अभिनन्दन निर्वाण । सुमति जन्म सुपार्थ च्यवन छ रे, सुविधि नमि जन्म कल्याण ॥१०॥ ॥३॥ मुनि सुव्रत जन्म अति गुण निधि रे, नेमि शिव पद लहसार । पार्श्वनाथ निर्वाण मनोहरु रे, ए तिथी परम अाधार ॥ अ० ॥ ४ ॥ उत्तम गणधरु महिमा सांभली रे, अष्टमी तिथी प्रमाण । मंगल पाठ तणी गण मालिका रे, तस घर शिव कमला प्रधान ॥ अ० ॥ ५॥ ----- ढाल चौथी काउस्सग्गनी नियुक्तिए भाखे, महानिशीथ सूत्रे रे । ऋषभ वंश दृढ़ वीरजी आराधी, शिवसुख पामे -पवित्रे रे श्री जिनराज जगत उपकारी ॥१॥
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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