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________________ [८७] भोगवी राज्य उदारजी, चारित्र लीये सारा । हुवो केवलज्ञानीजी, पाम्या भवपारा ॥४॥ ढाल छठी जगदीश्वर नेमीश्वरू रे लोल, ए भाख्यो संबंध रे सोभागी लाल । बारे पर्षदा आगलेरे लोल, ए सघलो परबन्ध रे सोभागीलाल || नेमीश्वर जिन जयकरुरे लोल ॥१॥ पंचमी तप करवा भणी रे लोल, उत्सक थया बहु लोक रे सोभागी लाल । महापुरुषनी देशना रे लोल, ते कीम होवे फोक रे सोभागी लाल ॥२॥ कार्तिक सुदि जे पंचमी रे लोल सौभाग्य पंचमी नाम रे सोभागी लाल । सौभाग्य लहीए एहथी रे लोल, फले मन वांछित काम रे सोभागीलाल ॥३॥ समुद्रविजय कुल सेहरो रे लोल, ब्रह्मचारी शिरदार रे । मोहनगारी मानिनी रे, रुड़ी राजुल नारी रे सोभागी लाल ॥४॥ते नवि परणी पद्मिणीरे लोल, पण राख्यो जेणे रंगरे सोभागीलाल । मुक्ति महेलेमां बेहु मल्या रे लोल, अविचल जोड़ अभंग रे सोभागी लाल ॥५॥ तेणे ए माहात्म्य भाखीयुरे लोल, पांचमनु परगट रे सोभागी लाल । जे सांभलतां भावशुरे लोल, श्री संघने गहग्रह रे सोभागी लाल ॥६॥
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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