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________________ ( ३४ ) (११) श्री मल्लिनाथ जिन चैत्यवंदन मल्लिनाथ ओगणीशमा जस मिथिला नयरी; प्रभावती जस मावडी, टाले कर्म वयरी ॥१॥ तात श्री कुंभ नरेसरु, धनुष पचवीशनी काय; लंछन कलश मंगल करू निर्गम निरमाय ॥२॥ वरस पंचावन सहसनुं ए जिनवर उत्तम आय; पद्म विजय कहे तेहने नमतां शिवसुख थाय ॥३॥ (२०) श्री मुनिसुव्रत जिन चैत्यवंदन जपो निरंतर स्नेह, वीसमा जिनराय; सुमित्रराय पद्मावती सुतशुं मुज माय ||१|| कच्छप लंछन धनुष वीश, श्यामा वर्णी काया; त्रीश सहस्त्र वर ( स ) आवर्खु, हरिवंश दीपाया ||२|| मुनिसुव्रत महिमा निलो ए नगरी राजग्रही जास; रूपविजय कहे साहिबा नामे लील विलास ॥ ३॥ (२१) श्री नमिनाथ जिन चैत्यवंदन मिथिला नगरी राजियो, वप्रा सुत साचो; विजयराय सुत छोडीने, अवरांमत माचो || १ || नीलकमल लंछन भलुं पन्नर धनुषनी देह; नमि जिनवरनुं सोहतुं गुण गण मणि गेह ॥२॥ दशहजार वरस तणु एपाल परगट आय; पद्मविजय कहे पुण्यथी, नमिये ते जिनराय ||३|| 1 (२२) श्री नेमिनाथ जिन चैत्यवंदन नेमिनाथ बावीशमा, शिवादेवी माय; समुद्र विजय पृथ्वी पति जे प्रभुना ताय ॥ १॥ दश धनुषनी देहडी, आयु वरस हजार; शंख
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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