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________________ ( ३३ ) पिस्तालीस; रत्न पुरानो राजियो, जगमां जास जगीस ॥ २॥ धर्म मारग जिनवर कहे ए, उत्तम जन आधार, तिणे तुज पाद पद्म तणी, सेवा करुं निरधार ॥ ३ ॥ (१६) श्री शांतिनाथ जिन चैत्यवंदन जय जय शांतिजिणंद देव हत्थिणाउर स्वामि, विश्वसेन कुलचन्द सम, प्रभु अंतरयामी ।। १ ॥ अचिरा उर सर हंसलो, जिनवर जयकारी, मारी रोग निवारके कीर्ति जग विस्तारी ॥ २॥ सोलमा जिनवर प्रणमीये ए, नित्य उठी नामी शिश, सुरनर भूप प्रसन्न मन, नमतां वाधे जगीश ॥ ३॥ (१७) श्री कुंथुनाथ जिन चैत्यवंदन कुंथुनाथ कामित दीये, गजपुरनो राय, सिरिमाता उरे अवतर्यो शुर नरपतिताय ॥१॥ काया पांत्रीश धनुषनी, लंछन जसछाग केवलज्ञाना दिक गुणा, प्रणमो घरी राग ॥२॥ सहस पंचाणु वरसनुं ए, पाली उत्तम आय, पद्म बिजय कहे प्रणमिए मावे श्री जिनराय ॥ ३॥ (१८) श्री अरनाथ जिन चैत्यवंदन राय सुदर्शन गजपुरे, देवी पटराणी; लंछन नंदावर्त जास, अरजिन गुणखाणी ॥१॥ त्रीस धनुष वर देहडी, हेमवण जाणी; वर्ष चोराशी सहस्त्र आयु; कहे जिनवर वाणी ॥२॥ चक्रवर्ती प्रभु सातमो ए अढारमो मुज देव; रूप कहे भविजन तुमे करो नित्य • नित्य सेव ॥३॥
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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