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________________ ( ३५ ) लंछनधर स्वामीजी, तजी राजुल नार ॥२॥ सौरीपुरी नयरी भली ए, ब्रह्मचारी भगवान, जिन उत्तम पद पद्मने नमतां अविचल थान ॥३॥ (२३) श्री पार्श्वनाथ जिन चैत्यवंदन आश पूरे प्रभु पासजी, तोड़े भव पास, वामा माता जनमीयो अहि लंछन जास ॥ १ ॥ अश्वसेन सुत सुखकरु, नव हाथनी काया, काशी देश वाण.रसी, पुण्ये प्रभु आया॥२।। एकसो वरसनु आउखु ए, पाली पासकुमार, पद्म कहे मुगते गया, नमतां सुख निरधार ॥ ३॥ ॥२॥ सकल भविजन चमतकारी, भारी महिमा जेहनो, निखिल आतम रमा राजित, नाम जपीए तेहनो, दुष्ट कर्माष्टक गंजरी जे भविकजन मन सुख करो; नित्य जाप जपीये पाप खपीए स्वामी नाम शंखेश्वरो ॥१॥ बहु पुण्यराशी देश काशी, तत्थ नयरी वणा रसो अश्वसेन राजा राणी वामा, रूपे रति तनु सारीसी, तस कुखे सुपन चौद सूचित, स्वर्ग थी प्रभु अवतर्यों ॥ नित्य ॥ २ ॥ पोष मासे कृष्ण पक्षे, दशमी दिन प्रभु जनमीया, सुरकुमरी सुरपति भकित भावे मेरू शुगे स्नायोया प्रभाते पृथ्वी-पति प्रमोदे जन्म महोत्सव अतिकर्यों ॥ नित्य ।। ३ ॥ त्रण लोक तरूणी मन प्रमोदो, तरूण वय जब आवोआ, तब मात ताते प्रसन्न चित्ते, भामिनी परिणावीआ कमठ शठ कृत अग्निकुंडे, नाग बलतो उद्धर्यों नित्य० ॥ ४॥ पोष वदि एकादशी दिने, प्रवज्या जिन आदरे सुर असुर राजी भक्ति ताजी,
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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