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________________ ( ३२ ) (१२) श्री वासुपूज्य, जिन चैत्यवंदन वासव वंदित वासुपूज्य, चंपापुरी ठाम; बसुपूज्य फुल चंद्रमा माता जया नाम ॥१॥ महिष लंछन जिन बारमा, सित्तेर धनुष प्रमाण, काया आयु वरस वली, बोहोंतेर लाख वखाण ॥ २ ॥ संघ चतुर्विध स्थापीने से, जिन उत्तम महाराय; तस मुख पद्म वचनः सुणी, परमानंदी थाय ॥ ३॥ (१३) श्री विमलनाथ जिन चैत्यबंदन कंपिलपुर विमल-प्रभु, श्यामा मात मल्हार; कृतवर्मा नृप कुलनभे, उगमियो दिनकार ॥ १ ॥ लंछन राजे वराहनु, साठ धनुषनी काय, साठ लाख वरसांतj, आयु सुख दाय ॥२ ।। विमल विमल पोते थया ए, सेवक विमल करेह; तुज पद पद्म विमल प्रति, सेवं घरी ससनेह ॥३॥ (१४) अनन्तनाथ जिन चैत्यबंदन अनंत अनंत गुण आगरु, अयोध्यावासी; सिंहसेन नृप नंदनो, थयो पाप निकासो ॥१॥ सुजसा माता जनमीयो, त्रीस लाख उदार, वरस आवखुं पालीयुं, जिनवर जयकार ॥२॥ लंछन सिंचाणा तणुं ए, काया धनुष पचास; जिनपद पद्म नभ्या थकी,. लहिये सहज विलास ॥६॥ (१५) श्री, धर्मनाथ अिन चेत्ययेदन भानुनंदन धर्म नाथ, सुवृता भली माल; वज्र लछन वज्री नमे; त्रण भुवन विख्यात ॥१॥ दश लाख वरसनुं अवखुं, वपु धनुष
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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