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________________ 'धनुष नी देह, सुर नरपति सेवा करे, घरता अति ससमेह ॥ २ ॥ चंदप्रभ जिन आठमा ए उत्तम पद दातार; पविजय कहे प्रण'मिये, भुज प्रभु पार उतार ॥३॥ (8) श्री सुविधिनाथ जिन चैत्यवंदन सुविधिनाथ नवमा नमुं, सुग्रीव जस तात, मगर लंछन चरणे नमुं, रामा रुडी मात ॥१॥ आयु बे लाख पूरव तणु, शत धनुषनी काय; काकंदी नयरी धणी प्रणमु प्रभु-पाय ॥२॥ उत्तम विधि जेहथी लह्यो ए, तिणे सुविधि जिन नाम; नमतां तसपद पद्मने, लहिये शाश्वत धाम ॥ ३ ॥ (१०) श्री शीतलनाथ जिन चैत्यवंदन नंदा दढरथ नंदनो, शीतल शीतलनाथ, राजा भद्धिलपुर तणो, चलवे शिव साथ ॥ १ ॥ लाख पूरवर्नु आवखं, नेवं धनुष प्रमाण; काया माया टालीने, लह्या पंचम नाण ॥२॥ श्रीवत्स लंछन सुंदरु ए पद पद्म रहे जास; ते जिननी सेवा थकी लहिये लील विलास ॥ ३॥ (११) श्री श्रेयांसनाथ जिन चैत्यवंदन श्री, श्रेयांस अगियारमा विष्णु नृप ताय; विष्णु माता जेहनी, अंसी धनुषनी काय ॥ १ ॥ वर्ष चोराशी लाखनुं पालयु जेणे आय; खड़गी लंछन पद कजे सिंहपुरी नो राय ॥२॥ राज्य तजी दीक्षा वरी ए, जिनवर उत्तम ज्ञान; पाम्या तस पद पद्म ने, नमतां अविचल थान ॥३॥
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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