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________________ ( ५ ) वर्जी ॥३॥ स्वप्न लही जई रायने भासे, राजा अर्थ प्रकाशे; पुत्र तीर्थकर त्रिभुवन नमशे, सकल मनोरथ फलशे। वस्तु छन्द अवधि नाणे, अवधि नाण; उपना जिनराज, जगत जस परमाणुआ, विस्तर्या विश्वजंतु सुखकार ॥ मिथ्यात्व तारा निर्बला, धर्म उदय प्रभात सुन्दर माता पण आन्नदिया, जोगती धर्म विधान, जाणती जगतिलक समो, होशे पुत्र प्रधान ॥१॥ दुहा - - शुभ लग्ने जिन जन मिया; नारकीमां सुख ज्योत, सुख पाम्या त्रिभुवन जना, हुओ जगत उद्योग ॥१॥ ढाल कडखानी देशी ___ सांभलो कलश जिन, महोत्सवनों ईहां, छप्पन कुमारी दिशि विदिश आवे तिहा; मायसुत, नमीय, आनन्द अधिको धरे, अष्ट संवर्त्त, वायुथी कचरो हरे ॥ १॥ वृष्टि गंधोदको, अष्ट कुमरी करे अष्ट कलशा भरी, अष्ट दर्पण धरे; अष्ट चामर धरे, अष्ट पंखा लही, चार रक्षा करी, चार दीपक ग्रही ॥ २ ॥ घर करी केलना, माय सत लावती, करण शुचिकर्म जल कलशे न्हवरावती; कुसूम पूजी अलंकार पहेरावती, राखडी बांधी जई शयन पधरावती ॥३॥ नमीय कहे माय तुज, बाल लीलावती, मेरु रविचन्द्र लगे, जीवजो जगपति; स्वामी गुण गावती। निज धर जावती, तेणे समे इन्द्र, सिंहासन कंपति ॥ ४॥
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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