SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६ ) ढाल एकवीशानी देशी जिन जनभ्याजी, जिन वेला जननी घरे, तिण वेलाजी, इन्द्र सिंहासन थरहरे; दाहिणोत्तरजी जेता जिन जनमे यदा, दिशि नायकजी, सोहम ईशान बेहु तदा ॥ १ ॥ त्रोटक छंद तदा चिंते ईन्द्र मनमां, कोण अवसर राबन्यो ? जिनजन्म अवधि नाणे जाणी, हर्ष आनन्द उपन्यो ॥ १ ॥ सुघोष आदे घंटघोषणा सुर में करे "सवी देवी देवा जन्म महोत्सवे आवजो सुर गिरिवरे" || २ || नादे ॥ ढाल ऐकवीशानी देशी एम, सांभलीजी, सुरवर कोडी आवी मले, जन्म महोत्सवजी करवा मेरु उपर चले; सोहमपतिजी, बहु परिवारे आवीआ माय जिनमेजो, वांदी प्रभु ने वधावीआ ॥ ३ ॥ त्रोटक छंद वधावी बोले "हे रत्नकुक्षि धारिणी ! तुज सुततणोः हुँ शक्र सोहम नाम करशुं जन्म महोत्सव अति घणो" एम कही जिन प्रतिबिंब स्थापी, पंचरूपे प्रभु ग्रही, देव देवी नाचे हर्ष साथे, गिरि आव्या सही ॥ ४ ॥ ढाल एकवीशानी देशी मेरु उपरजी पांडुक वन में चिहुँ दिशे, शिला उपराजी, सिंहासन मन उल्लसे; तिहां नेसीजी, शक्रे जिन खोले धर्या, हरि त्रेसठजी, बीजा तिहां, आवी मल्या ॥ ५ ॥
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy