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________________ ... [ ८५ ] (२) अरनाथकुं सदा मेरी वंदना; जगनाथकु सदा मेरी वंदना जग उपगारी धन ज्यों वरसे; वाणी शीतल चंदना रे॥जग०॥१॥ रुपे रंभा राणी श्री देवी; भूप सूदर्शन नंदना रे ॥ जग० ॥२॥ भाव भगतिशुं अहनिशि सेवे दुरित हरे भवफंदना रे ॥जग० ॥ क्षा छ खंड साधी द्वधाकीधी; दुर्जय शत्रु निकंदना रे॥जग० ॥४॥ न्याय सागर प्रभु सेवा मेवा; मागे परमानंदना रे ॥जग० ॥५॥ (३) - अमे तो गाश्यां गाश्यांजी मन रंगे जिनराज तणां गुण गाश्यां दिल रंगे अरनाथ तणां गुण गाश्यां गाश्यांजी प्रभु मुख पूरण चंद समोवड निरखी निरमल थाश्यां जिन गुण समरण पान सोपारी समकित सुखडी खाश्यां ॥१॥ सुमति सुदरी साथे सुरंगी गोठडी अजब बनाश्यां जेह धुतारी कुमती नारी तेहशुदिल ना मिलाश्यां ॥२॥ दुती तृष्णा माया केरी तेहने तो समजाश्यां लोभ ठगाराने दील चोरी वातडी ए भरमाश्यां ॥ ३ ॥ मोह महीपती जे महा वेरी तेहशुं जंग भूडाश्यां ज्ञान सरोखा योघ सखाई करीने दुर कढ़ाश्यां ॥४॥ शिव सुदरी वरवाने केते जित निशान बजाश्यां विमल विजय उवज्जाय पसाये राम कहे सुख पाश्यां ॥५॥
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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