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________________ णयणंदि-विरइयउ सुदंसण-चरिउ ५ णमो अरहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं । णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्व साहूणं ।। इय' पंच-णमोकारइँ लहेवि गोउ विर हुवउ सुदंसणु। गउ मोक्खही अक्खमि तह। चरिउ वर-चउवग्ग-पयासणु ॥ ध्रुवकं ।। जसु रूउ णियंतउ सहसणेत्तु हुउ विभियमणु णउ तित्ति पत्तु। जसुचरणंगुठे सेलराइ टलटलियउ" चिरजम्माहिसेइ। महि कंपिय उच्छल्लिय समुद्द डोल्लिय गिरि गलगज्जिय गइंद। ओसरिय सीह जग्गिय फणिंद उद्धसिय झत्तिणहे ससि-दिणिंद । उत्तसिय ल्हसिय गुरु दिक्करिंद आसंकिय विजाहर सुरिंद। जसु सिद्धि-पुरंधित रत्तिया १० तव-सिरि दुई पट्टविय णाई। जसु केवलणाणे ११ जगु गरिट्ट करयल-आमलु व असेसु दिछ । तही सम्मइ-जिणही पयारविंद वंदेप्पिणु तह अवर वि जिणिंद । घत्ता-अह एक्कहिँ दिणि वियसिय-वयणु मणे णयणाणंदि वियप्पइ । सुकवित्त १२ चाएँ पोरिसण जसु भुवणम्मि'३ विढप्पइ ॥ १ १० सुकवित्त ता हउँ अप्पवीणु सुहडत्तु तह व दूरे णिसिद्ध णिय-सत्तिय तं विरयेमि कव्वु . चाउ वि करेमि किं दविण-हीणु । एवंविहो वि हउँ जस-विलुद्भु। पद्धडिया-बंधे जं अउव्वु । १. १ क ख इह । २ क गोवउ ; ग घ गोविउ। ३ ग घ हुअउ । ४ ग घ तेत्ति । ५ ख टलटलिअ य। ६ ख उच्छिल्लिय। ७ ख मइंद; ग घ गयंद । ८ ग घ ओरसिय । ६ ख ओसरिय; ग घ ओरसिय। १० ख ग घ रत्तियाए। ११ ख ताए। १२ क सुकहत्ते । १३ ग घ भुवणयले। २, १ ख तवहो ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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