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________________ ( ४८ ) सुदर्शन का परिचय कराया। (6) रत्न खचित कपाटों को देख सुदर्शन मुनि का वैराग्यभाव (१०) विलासिनी द्वारा मुनि को प्रलोभन (११) विलासिनी की कामलीला व मुनि की निश्चलता (१२) देवांगना के विमान का वर्णन (१३) मुनिराज के ऊपर आकर विमान कैसे स्थिर हुआ (१४) देवांगना का रोष (२५) व्यंतरी का पूर्वजन्म स्मरण व मुनि का उपसर्ग (१६) भूतों और वेतालों की उद्वेगकारिणी माया (१७) महान् उपसगों के बीच सुदर्शन मुनि की स्थिरता (१८) व्यंतरी का घोरतर उपसर्ग और मुनि की वही निश्चलता (१९) सुदर्शन का पूर्व उदाहरणों का स्मरण और स्वयं दृढ़ रहने का निश्चय । (२०) रक्षक निशाचर व्यंतरी को ललकारता है। (२१) शिशिर और ग्रीष्म वागों का प्रयोग । (२२) निशाचर द्वारा वर्षा वाण का प्रयोग व व्यंतरी का पराजय । संधि १२ (१) माया गज का निर्माण और उस पर आरूढ़ हो सुरेन्द्र का आगमन (२) इन्द्र द्वारा सुदर्शन केवली की स्तुति । (३) इन्द्र की स्तुति हो जाने पर कुबेर द्वारा समोसरण की रचना। (४) केवली भगवान के विशेष अतिशय (५) सुदर्शन केवली का उपदेश व व्यंतरी का वैराग्यभाव (६) व्यंतरी व नगरजनों का सम्यक्त्वधारण व मुनिराज का मोक्षगमन (७) पंचनमोकार का महात्म्य (८) इस कथा की श्रुत परम्परा । (8) कवि नयनन्दी की गुरु परम्परा (१०) काव्य रचना का स्थान, राज्य व काल।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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