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________________ ११० पालाविह पहरण परिहरेवि अण्णोष्णुप्प्रे लिय कुटपरेहि. केसरिकमे हि उरपेलणेहि णिसियरणिव तहिँ जुम्भंति बे वि ॥ करगाह छोडदुकरेहि" । अहियासहि" मच्छुच्छल्लणेहि ॥ अतुलपरकम सोहियविग्गह । करिवराज" दोणि विल्हसिय णं मयणंगणार कूरग्गह ||१०|| ११ यदिविरइय घत्ता - इय जुज्ता सामरिस ११ कंचणणिबद्धए घगधगियमपियरे मण जवपयट्टए धूवधूमाउल्ले खणखणियसंखले हिलिहिलियहवरें णिउ चडि जावहिं लहु अवर संद खणुविण है थक दुवइया वज्जरी धत्ता - सोहइ प्रिसियररहवरेण भूरिकणयभाभासुर तो अंगणा जहिययरामेण अप्फालिओ चाउ' सुरअसुर माणे डरिय १२ १०. ६ क ढक्करेहि । १० क महिपासहि । ११. १ ख उभियौं । २ मघुमिय। ४ इयूले । ५ क ब वि.पा हु ख खलु विप १२. १ ख प्रप्फालिय बचाउ । सुचि । मंदकिंकिणीसरे ॥ टटणियघंटए । मुगुमियअलिउ || [. १०. ६ बहुवलचंचलें । एरिसे रहवरे ॥ रमियरु तावहिं । आरुहिउ तक्खणे || समरि परिसक्कए । अमरपुर सुंदरी । परिअंचित चंपाहिवरहरु । णाइँ दिवायरेण सुरमहिहरु ||११|| रहवरसणाहेण । अइपवरथामेण ॥ उच्छलिउ गुरुणाउ | णिरु धरणि थरहरिय || १० १० ११ ख करिकराउ | ३ क बहुबहल चंचले : ख बहुचलण' । ६ ग घ णिसियरराहवेण ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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