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________________ १. १३. १४] .. पुसणचरित विसिगय समोसरिय हुय मणुय भयजरिय। खयरउल खलखलिय गिरिसिहर टलटलिय ।। विसहर वि सलसलिय जलणिहि वि झलझलिय । पर मुवि रयणियरु.. कापण्ड गुणणिबरु धणु लेवि सो थक्कु . सएण तो मुक्कु । बाणोहु किर जाम णिसियरेण तहाँ ताम ॥ खंडियउ घणु छत्तु महिवीढे संपत्तु । पर दुवइ णउ भंति इय चारु पयपंति ॥ घत्ता-तहि अवसरि चंपाहिविण मुक्क सत्ति तिमियरहो तुरंती । हिया लग्ग णिरु पाणपिय गाइँ विलासिणि मुच्छ करती ॥१२॥ तो गयणंगणे चवियसुरासुरे महिलपराहवे सुरहँ ण लजिय णिसियरुराएँ राहुं जिंह रवि हुउ मुहकायरु सत्तिपहारें वेविरगत्तउ किहँ जीवेसइ कुविण गरेसरि लंबियबाहही. को वि ण सरणउ, हा कि किजइ मिलियसुरंगणे । तणुभामासु ॥ जायमहाहवे। । घणु जिह गजिय॥ मणि संकसाएँ। णिजिउ पुणरवि ॥ णवर णिसायरु। अइ अणिवारें। मुच्छई पत्ताउ । संसउ दीसई॥ एहट अवसरि । वणिवरणाहहीं। दुक्कड़ मरण। कासु कहिजइ ॥ ....१२.२ ख जरजरिय। ३. क पर सूर्यवि भणराव रणियह धराव। १३. : १ के एहए पाहवे। २ ख महिकायरी ३ के कह में घ किर।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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