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________________ सदसणचरित १०६ ६. १०.५] घत्ता-वरमायंगहिँ आरुहिय गलगजेवि गिरिवरहँ थिय विणि वि दुद्धररोसही चडिय । णाइँ पवरपंचाणण भिडिय॥ १० वे वि तक्खडा दप्पउन्भडा। देहभासुरा णं सुरासुरा।। बद्धमच्छरा णं सणिच्छरा। जुझकोच्छरा तोसियच्छरा ।। अंबुहीगिरा कजजंपिरा। लच्छिरामिया सेण्णसामिया ॥ णं भयावणा रामरावणा। दुक्कसम्मुहा मुक्कआउहा ।। घायघुम्मिरा रत्ततिम्मिरा। दो वि सुंदरा णाइँ मंदरा ॥ कंपवजिया देवपुजिया। छंदु सिद्धओ सुपडिबद्धओं ॥ घत्ता-तो राएँ रयणीयरहो णिज्झरवंतु तुंगु करिपञ्चलु। दीहरबाणहिँ छाइयउ णावइ विसहरेहि मलयाचलु ॥६॥ समर?' थोटटु आहर्व पयट्टु महिणा, पुणरवि णिसियरस अइउज्जु मोक्खहिँ धावमाणे तहि अवसर पडइ ण हत्थि जाम अंगाहिवसिंधुरै चडिउँ केम सरजालें पूरिउ सो दुघोटु । संपेखिय वाणसयाइँ तस्स ।। गुणपेरिय मुणि व सहति बाण । सो जावहाणु सहस त्ति ताम ।। कमु देइ धराहरे सीटु जेम। ५ ९. १ घ सुप्पसिद्धनो सुपडिबद्धमो। २ ख कयपच्चलु । १०. १ क समरट्ट। २ क ग घ पूरिवि। ३ ख ठाणु रयेई ; ग ठाणु रएवि; घ बाणु रएवि। ४ क अइउजय ; ग घ प्रइदुबय। ५ ख मोक्खु ण धाइमाणु; ग घ मोक्खुण धावमाणु । ६ क जा ण हणइ ग घ जा हणेइ। ७ ख अण्णई वरसिंधुरे। ८ ख चडिवि ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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