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________________ १०८ णयणदिविरहयउ [६.७. ५-- पिहुलत्तेण तिकर सत्त जि कर तुंगत्तेण मणहरा। वेवत्तेण दह जि कर भासिय दीहत्तेण णवकरा ॥ पच्छश णविय उण्णया अग्गष्ट पुच्छकरेहिं दीहरा। वंसविरायमाण दिढ णावइ संचारिममहीहरा ।। पयपब्भारणमियवसुहायल चूरियसयलविसहरा। खरकण्णाणिलेण णीसेस वि आकंपवियसायरा ॥ अइगंभीरबहलगलगज्जियबहिरियसयलकाणणा। कुंभत्थलसुतेयसिंदूरे अरुणियदसदिसाणणा ।। धंति वलंति ठंति सवडम्मुह दिति उरे उरत्थलं । दंतग्गेहिँ दंत णिभिदिवि लिंति करेण करयलं ।। पुणु सुतिरिच्छ होति जुझंति ण ठंति खणं पि णिश्चला। अट्ठावीसमत्तसंजुत्तिय दुवई एस विज्जुला ।। पत्ता-तो णिवदंतिष्ठणिसियरहो गयवर रयणहँ कोडिउ दिण्णउ । __पुणु मग्गियउ पडेवि थिउ णावइ रिणिउ लेइ उच्छिण्णउ ।।७।। ८ एत्थंतर माणसजायसल्लु अण्णहिँ गट आरूढउ पिसल्लु। रे रे भूगोयर पावरासि समरंगणु मेल्लिवि णासि णासि ।। णाणाविहवरपहरणकराहँ जा हुइ अवत्तथ तुह किंकराहँ। सा तुह म होउ इय भणइ जाम दोच्छिउ णिवेण रयणियरु ताम । णउ लजिओ सि तुहुँ इय भणंतु अप्पाणउ किं विणडिउ खणं तु ।। भूगोयरेण सुवियक्खणेण किं ह्यउ ण दहमुहु लक्खणेण । महु करिणा तुह करि णिहउ जेत्थु तुह महु समसीसी कवण तेत्थु ।। अह अस्थि सत्ति तो भिडु णिरुत्तु रक्खसही वि भेक्खसु हउँ पहुत्तु । (रयडा णाम पद्धडिया ) ७. ५ क विकर। ६ ख विद्वत्तेण। ७ ख दंति। ८ ग घ णिभंदिवि । ६ ख ल । १० ख ते। ११ क णिवडतीए, गणिवडती ; ख घ णिवदंती। १२ ख रयणिउ ; ग घ रयणहो। १३ क मग्गए। ८. १ क पाख्दु मल्लु। २ क णाणाविहधणु पहरण । ३ ख वहुवइ हणंतु; ग घ णिवडिउ खणंतु । ४ क तुहुं मुहु समसीसइ। ५ घ भक्खुसु ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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