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________________ - १. ३. १२] सुदंसणचरित १०५ भणइ का वि लग्गेवि गलकंदले भिडेवि तेत्थु उब्भडभडगोंदले । आणसु धयवडाओ सुविसालअ करमि जेम घरि वंदणमालउ'। भणइ का वि सिंदूर पंकिय विप्फुरतमोत्तियहि अलंकिय । आणि गंपि अरिकरिसिरसंघड करमि जेम णियघर मंगलघड । भणइ का वि कामिणि कामाउर जइ पइँ हरवि णेइ पवरच्छर। तिलु तिलु लुणिवि देहु सइँ घायमि ता णिरुत्तु तियवहु तुह लायमि । भणइ का वि पहुकज्जु करेजसुदुरयतुरंगणियरु घाएजसु । अरिबलु पबलु सयलु बलि दिज्जसु महु घरे विजयरेह आणिज्जसु । घत्ता-णीसेसु वि बलु सण्णहेवि सहुँ धरणीसरेहि संचल्लिउ । सोहइ पच्छायंतु महि जुयखण णं समुदु उच्छल्लिउ ॥२॥ १० । चलइ णिवबलं दलइ महियलं। सहइ णहभरं' वहइ अइडरं ॥ दलइ फणिउलं चलइ आउलं। मुयइ विससिहिं हरइ जणदिहिं ।। चलई जलथलं खलइ अरिबलं । करइ भयरसं सरइ दसदिसं॥ मिलइ हयथडो घुलइ धयवडो। मुसइ अंबरं पुसईं दिणयरं ।। रसइ पडहओ उसई करहओ। कमइ संदणो भमइ भडयणो । रुलइ रयभरों चलई णिभरो। चडइ णहयले पडइ महियले ।। २. १ ख भिडइ। २ ग घ बंदुरमालउ। ३ ख विप्फुरेहि । ४ ख णियवउ । ५ ग घ तुरय। ६ क ग घ सरेण । ३. १ क ग घ णहुभरं। २ ख विसहरं। ३ घ जलइ। ४ ख भडथडो। ५ क लुडइ। ६ ख सुसइ। ७ ख कसइ। ८ क रुलइ रइभमो (टि० रजोभ्रमः); ख चलई । ६ ख रलइ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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