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________________ .१५ णयणंदिविरहाउ [८. ३७. १३पियेइ मयतण्डिया कुलिससूइ को घासए। गसेइ विसमंजरी जलहिवेल को सोसए ॥ लुणेइ जमदाढियाँ गरुडपक्ख को भंजए । छलेण बलि मंडएँ महु पिया वि को भुंजए ॥४॥ हुयास अहि वेरिणो चउर जार उपेक्खए। . ण सो सुइरु णंदए गरुवआवयं पेक्खए । सुदुट्ठणरणिग्गहं सुयणपालणं जुत्तयं । णिवस्स जइ भूसय पुहइछंदयं वुत्तय" ॥५॥ - घत्ता-अहो अहो भडही तुरिज तुरिउ जा जाहु अभय साहारहु। __इयरु वि लेहु लेहु हणहु खर्ण तिलु तिलु कप्पेवि मारहु ॥३७॥ ५ तं णिसुणेवि वयणु महिवालही केण वि दिट्टि दिण्ण करवालही। केण वि चाउ सगुणु अवलोइउ वरकलत्तु जिह मुद्विह माइउ । केण वि असिघेणुय विष्फारिय' णं कालेण जीह णीसारिय । केण वि वुत्तु णाहु जसु रुढउतसु लुणेमि हउँ णासु सउट्ठउ । केण वि वुत्तु अजदिणु धण्णउ देवदेव जं पेसणु दिण्णउ । हत्थपहत्थवंतु वियरेसमि इंद इव्व ह हणउँ धरेसमि । केण वि वुत्तु हउँ वि जाएसमि अजुणु व्व कण्णही लग्गेसमि । केण वि वुत्तु राम हउँ होसमि विडसुग्गीवहीं माणु दलेसमि। केण वि वुत्त मइँ वि ण पुज्जइ सुहङसमूहु कीस पेसिज्जई। केण वि वुत्तु गजि किं किजइ विरलें पहुई कज्जु साहिज्जइ । (पारंदिया णाम पद्धडिया) घत्ता-इय गजिवि जसलंपडेहि सुहडहिँ धावंतहि वणिवरु। वेढिउ चाउद्दिसु सहइ साणहिँ णं कत्थई करिवरु ॥३८॥ ३७, ५ क विसइ मयतंउणा। ६ क डाढिया। ७ ख वंडए । ८ ग घ आवई। ९ क पालयं । १० ख घ भूसणं। ११ क छंद वुत्तयं । १२ क अहो भडहो भडहो तुरिउ। १३ क हणउं। १४ ख खणि खणि कप्पिवि मारहो । ३८. १ घ अप्फारिय। २ क में यह पूरी पक्ति नहीं है। ३ ख णिउ ; घणिव ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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