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________________ ८. ४०.१०] सुदंसणचरित ३६ जा मारणहुँ' णियउ वणिसारउ ता जणेण पुरि किउ हाहारउ । पप्फुल्लियराईवसुवत्तिहे जहिय वत्त केण वि तस पनि तुज्झ कंतु णिवरमणिहिँ चुक्कउ दूसहमरणावत्यहिँ ढुक्कउ । तं णिसुणेवि उटुंति पडंतिय उरयलु करयलेहिँ ताङतिय । णयणंसुनहिँ सिहिण सिप्पंतिय तणु पासेयविंदुहिँ थिप्पंतिय । मणिपालंबदोर गुप्पंतिय मुहमरुमिलिय भमर वारंतिय । अइदीहुण्हसास मेलतिय प उणाहयलय व्व कंपंतिय । हा किं कियउ णाह जंपतिय गंपिणु तं पएसु संपत्तिय । (पारंदिया णाम पद्धडिया) घत्ता-सहइ मणोरम पुणु वि पुणु भडयण असेस जिंदंती। केसग्गहे आरुट्ठमण पंचालि णाई कंदंती ॥३६।। हा हा णाह णाह पुक्कारइ पइँ मुएवि मइँ को साहारइ। हा हा णाह णाह जगसुंदर संपयाट पञ्चक्खपुरंदर।। हा हा णाह णाह जणवल्लह अमरंगगगणाह्म णदुल्लह । हा हा णाह णाह आणंदण जिगवरिंदमहरिसिकयवंदण। हा हा णाह णाह मयरद्धय हिंसाइयदोसेहिँ अलुद्धय। हा हा णाह णाह किं भाविउ में परयारु गपि पइँ सेविउ। हा हा णाह णाह वउ भग्गउकिं घुणु वज्जखंभि आलग्ग। हा हा णाह णाह महुँ एहउ णउ सहहइ चित्ते सविरोहउँ। . (पारंभिया णाम छंदो) जत्ता-जाणमि संढ सुरासुर वि छुडु कंतु ण केण वि रक्खिउ । __ हा हा कासु कहेमि हउँ परदुक्खें को वि ण दुक्खिउ ॥४०॥ १० ३६. १ ख मारणहिं ; ग घ - मारणहं। २ क लियउ। ३ क सुवत्तहें । ४ क रमणेहि । ५ ख सुणेवि । ६ ख पालंतु हारु । ७ क में 'अइदीहुएण..... जंपतिय' इतना पाठ नहीं हैं। ------ ४०. १ ख जग। २ ख गणवराह । ३ क वजखंडे । ४ घ में यह पूरी पंक्ति नहीं है। ५ क सविरोहिउ, ख चित्त । ६ केवल क प्रति में। ७ क संद; ख चंद । ८ क कोण वि ण ; ख को ण वि ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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