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________________ ८. ३७. १२] सुदंसणचरिउ अवर वि जे जे तियमइहिँ जाएसहि " वीसासु । ताह ताहँ गलकंदला लग्गेसइ जमपासु ॥११॥ जेम भउहहिँ जेम दिट्ठीप तह जिह जंपति" गिर होइ वंक तिय तेम हियवए। सेच्छाप्न संचरिवि पुणु वारवार गज्जेइ जणवए ॥ अलियउ पुक्कारिवि रडेवि परु मारावइ धिट्ठ। हो हो किं कि णउ करइ तिय रुट्ठिय" मा दिट्ठ ॥१२॥ (वस्तुबंधकडवयं") घत्ता-तं कूवार सुणेवि जणु लहु ससरु सचाउ पधावई । सूरपहाहरु' तडितरलु पाउसि णवजलहरु णावइ ॥३६॥ ३७ तओ णिवइ पुच्छए जणु णिएवि' धावंतओ। कहिं पि गिरितुंगओ गउ विछुडे किं मत्तओ॥ महंतु दविणीसरो लयउ किं पि बंदिग्गहे । सदप्पु अरि को वि किं महु पउत्तओं विग्गहे ॥१॥ किमेत्थ णडवेक्खणं अह व किं पि चोजं वरं । तओ णरु णमंतओ कहइ को वि वित्तंत्तरं ॥ सुदंसर्णण देवहो अभयदेवि वम्मासिया । सरम्मि जिह पोमिणी गयवरेण विद्धंसिया ॥२॥ इयं सुणेवि पत्थिओ अरुणणेत्तदट्ठाहो। फुरंतणासाउडो तिवलिभाल भंगुरो॥ पकंपियसरीरओ बहलसेयअल्लल्लओ। करेण हयभूयलो भणई एम रोसिल्लओ ॥३॥ ३६. ४४ क जाएसइ। ४५ क घ जिह जि पंति। ४६ क संवरेवि (टि. कडछीवि ); ख सेच्छइ संचल्लइ वि। ४७ ख पुकारइ रडइ। ४८ ख रुट्ठी। ४६ ख बंधा कडवया । ५० ग घ पधाइउ । ५१ क पहारु; ख पहाहउ । ३७. १ क णुएवि। २ ख छुट्टयो। ३ ख पत्तउ ग पहुत्तउ ; घ किं महुत्तउ । ४ ग घ हणइ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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