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________________ ७६ - णयणदिविरइयउ [८. ५. ३पंगु कुंटु दुब्बलु दुग्गंधउ कूरचित्तु खासणु बहिरंधउ। सो मुएवि इयर्स वि सिरिरिद्धउ जइ वि सुरिंदु अह व मयरद्धउ । तो वि महासईट वज्जिव्वउ' भउ दक्खिण्णु लोहु ण करिव्वउँ । ... ५ सेच्छ गेहकम्मे सुयपोसणे णाहसयणे तह देहविहूसणे। इय मेलेविणु अवरु णिसिद्धउ । तियहि सइच्छायरणु विरुद्धउ । अमियमहाएवी पररत्ती कोढिं सढिय' णरण संपत्ती । इयरउ को गणेइ पुणु णारिउ बहु अणस्थ बहु अवजसगारिउ । तुहुँ वि ताहँ पंथे मा गच्छहि सग्गु मुएवि णरउ कि वंछहि । १० अंगोवंग सहोच्छिय दावइ तं खजइ जं परिणइ पावइ ।। अण्णु मज्मु तं हासउ दिजइ घररिद्ध भिक्ख भमिजइ । तुज्झु कंतु तिहुवर्ण सुपसिद्धउ सहइ पयक्खु णाइँ" मयरद्धउ । [पारंदिय णाम पद्धडिया] घत्ता-अभयामहाएविए णवर विहसेप्पिणु एम पउत्तउ । जं पइँ जंपिउ हियवयणु"तं हउँ जाणमि मात्र णिरुत्तउ ॥५॥ १५ दोहाष्टकं जाणमि वणि गुणगणसहिउ परजुवईहिँ विरत्तु । पर महु अंबुले हियवडउ णउ चिंतेइ परत्तु ॥१॥ जाणमि हउँ उवहाणई किं तुहुँ चवहि बहुत्तु । अंबिट को ण वि पंडियउ परउवएस कहंतु ॥२॥ जाणमि इह कुलउत्तियहिँ एक्कु जि णियपइ जुत्तु । ५. ३ ग घ खीसणु। ४ ख अवरु। ५ क वज्जेवउ । ६ क करेवउ । ७ क सुपयासणे। ८ क मयणे। ६ ग घ तव । १० ख वरणु; ग घ चरणु। ११ क णिसढिय। १२ ख प्रवत्थ । १३ क ख पंथें आगच्छहि। १४ क इच्छहि । १५ ख सहोच्छा। १६ ख मझु हासउ दिज्जिज्जइ । घरि रंधिज्जइ; ग घ घर रखए । १७ क एयरहु णं। १८ ख विहसेविणु। १६ क ग घ तं जाणमि । ६. १ ग घ वणिवरु गुणसहिउ । २ ख पर मुहि अंबलि । ३ क इय ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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