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५. ७.१०]
सुदंसणचरिउ पर हउँ माइ किं करमि तहा उप्परि मणु खुत्त ॥३॥ जाणमि परपुरिसही उवरि णउ किज्जइ आसत्ति । कित्तिउ वुच्चइ पुणु वि पुणु अइदुल्लंघ भवित्ति ॥४॥ जाणमि कंतु वि महु तणउ मयरद्धउ व विहाइ । पर महु अब्बो लग्ग मणे णिरु सुहृदंसणवाइ ॥५॥ जाणमि पइँ मोहाउलश हिय-मिय-सिक्खा दिण्ण । पर मइँ उववणु जंतियश अज्जु जि किय सुपइण्ण ॥६॥ कविलय सहुँ बोल्लंतियण मइँ तहिँ एम पवुत्तु । जइ सुहदसणु णउ रममि तो हउँ मरमि णिरुत्तु ।।७।। इय णिसुणेविणु पंडियट तो वुत्तउ विहसेवि ।
खीलयकारणि देवउलु णउ जुत्तउँ णासेवि ॥८॥ घत्ता-रहसें सीलु परिचणवि जणणिंदु कज्जु णउ किन्जइ ।
वरसुवण्णकलसही उवरि ढंकणु किं खप्परु दिजइ ॥६॥
इयरहँ दिव्याहरणहँ पासिउ सीलु वि जुबइहे मंडणु भासिउ । हरिवि णीय जाकिर दहवयणे सीले सीय दड्ढ णउ जलणे । तह अणंतमइ सीलगुरुक्किय खगकिरायउवसग्गहँ चुकिय । . रोहिणि खरजलेण संभाविय सीलगुणेण णइट ण वहाइये। हरि-हलि चक्कवट्टि-जिणमायउ। अज वि तिहुयणम्मि विक्खायउ। एयउ सीलकमलसरहंसिउ फणिणरखयरामरहिं पसंसिउ । जणणिए छारपुंजु वरि जायउँणउ कुसीलु मयणेणुम्मायउ । सीलवंतु बुहयणे सलहिज्जइ सीलविवजिएण किं किजइ ।
पत्ता-इय जाणेविणु सीलु परिपालिज प्र मात्र महासइँ। _ णं तो लाहु णियंतिहे हले मूलछेउ तुह होसइ ॥७॥
६. ४ ख मायए। ५ ख रत्तु । ६ ख कीय पयण्ण। ७ क जुत्त वि ।
७. १ ख जुवई। २ ख किर जा। ३ ख सीय ण दड्ढिय जलणें । ४ ख हो। ५ विहाइय। ६ परिजायउ। ७ क ज्जए महासइ। ८ क णियंतियहि ।