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________________ सुदंसणचरित भिक्ख भमंतिउ दुक्ख सहति । इय चिरु अच्छहिँ सोक्ख समिच्छहिँ । दइयहुँ " रूसहिँ अप्पउ दूसहि। तिहुवणरम्महुँ तो वि ण धम्महुँ । लग्गहिँ मूढिउ पावपरूढिउ । घत्ता-पुणु बणिणाहे पुच्छिउ मुणिवरु रहसु ण रक्खइ । अवडयदिटुंते जीवहाँ दुहु सुहु तं अक्खइ ॥१५॥ २० चलियउ को वि तरुघणे गयउ काणणे भिल्लपंथि' पत्तो। धाविउ तासु गयवरो उद्धकियकरो गुलुगुलंतु मत्तो ॥ आरणालं ॥ गयभीयउ णासंतो संतो सरणं अलहंतो । जा घिप्पइ सो णरु किर करिणा णं हरिणो हरिणा । ता तहिँ रणे सो बप्पडउ पेच्छेविणु अडउ। तहिं अर्ड लंबइ तणु सपयासे लग्गेवि दिढकासे । जाम अहो जोयइ किर तट्ठो अजयरु ता दिट्ठो। अवर वि चउकोणेसु सदप्पा दिट्ठा चउ सप्पा। तो किण्हसिया मुसय संकास कुरुडहिँ सपयास। एत्तहिँ मायंगे पवहते ९ तहिँ त अलहंते । तही अडयही" तडि दिट्ठो विडवी दंतेणाहर्णवी। कंपाविउ तहाँ साहही गुलिउ'३ महुयरि महु गलिउ । सो झत्ति वि उड्ढंमुहु" जाओ णिसुणिवि तही राओ विसमपओ इय पायाउलओ सोलह दह कलओ। . १५. १० क इह । ११ क ग घ दिव्वहु । १२ ग घ कि पि। १३ क तिहु गरजम्महुः ख रमणहु। १४ ग घ मयणावयारो। --१५ क ग अवड्डयः ख अड। १६. १ ख भिल्लिपंथि। २ ग घ धायउ। ३ ग घ °कयकरो। ४ प्रतिबु 'अलहंतो इय संतो'। ५ ग घ किर सो णरु। ६ ग घ बप्पुडउ। ७ ख सयपासें । ८ खसें। ६ ख च वहति । १० ते तहि । ११ ग घ तडयहो। १२ ख ताए तहि रोसिण सो विडवी। १३ क गालिंऊ ख गुलियउ। १४ ख मुहयरि त गलिउ । १५ क झत्ति उड्ढ; ख झडत्ति उड्ढ ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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