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________________ णयणदिविरइयउ पत्ता-उड्ढ णियंतही तही खिल्लविल्ल संजोएँ । णिवडिउ जीहही महुबिंदु लिहइ अणुराएँ ॥१६॥ [ ६. १६. १५ १५ उ। कुद्धं महुयरीउलं लग्गए अलं तासु सव्वदेहे। अवजसमिव कुणंदणे फणि व चंदणे धूठ णं कुगेहे ॥ आरणालं ॥ तहिँ काणणु संसारु णिरुत्तउमणुउ जीउ जिणणाहे वुत्तर। भिल्लपहो अहम्मु उवलक्खिउ वणकरि मिच्चु वणीसर अक्खिउ । अडउ देहु बहुदुक्खहँ भायणु अजयरु णारयणिलउ भयावणु। ५ सप्प कसाय चारि अइदुद्धर सहि जगु वि कहिँ छुट्टइ सो किर। कासतंबु आउसु मइदक्खा किण्हसेय मूसय दो पक्खा। विडवी कम्मबंधु णिरु दुञ्चलु महुबिंदु वि इंदियसुहु चंचलु । महुयरीउ बाहिउ अपमाणउ दुस्सहाउ पीडहिँ उद्धाणउ । जीउ मुणंतु वि इय अवगण्णइ असुइकिमी असुइहि रइ मण्णइ ॥१०॥ १० घत्ता-इय णीसारए संसारए सारउ तउ पर। जे भवि भवि किउ कलिमलु णिण्णासइ वणिवर ॥१७॥ १८ जिणु वि गिहत्थु होतउ गयचरित्तउ ण हु लहइ झाणं । माणे विणु मणोहरं मोक्खपुरवरं दुल्हं णराणं ॥ आरणालं ।। तं णिसुणिवि णिव्वेय-पउत्तउ गउ वणिंदु णियघरु संपत्तउ । कहइ सुदंसणासु संखित्तउ जणपसिद्ध ववहारु णिरुत्तउ । णारीयणहो दोसु झंपिज्जइ चित्तहाँ अणुजायउ जंपिजई । अजलोट दक्खिण्णउ किन्जइ दुट्ठारिहिँ विक्कमु पयडिज्जइ। गुरुयणे विणउ भत्ति दाविजइ विणएँ लच्छि कित्ति पाविजइ । १६. १६ ग घ खेल्लिविल्ल । १७ ख ग घ महइ । १७ १ क भिल्लपंथ। २ क लक्खिउ। ३ क भयाणणु । ४ ख जि। ५ ख कम्मु । ६ क व। ७ घ महुयरियउ । १८. १ क °सुखवरं। २ ख णिव्वेइ। ३ ख परि। ४ क सुदंसणाउ। ५ ख चित्तहिं । ६ घ संपजइ। ७ ख गुरुणा । .
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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