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________________ 421 सूत्र उपासक गणधर भाखे, नहि कोइ अहने तोले. ॥१३॥ तूंगीया नगरी श्रावक बहुला, पांचमे अंग दिखावे, जिन प्रतिमानी पूजा करी, पछी गुरु वंदन जावे. ॥१४॥ सूत्र समवायांग आवष्यक बोले, जल थल फुल लावे, समकित स्थापना धारी श्रावक, प्रभुजीने फुल चढावे. ॥१५॥ फुल पूजा प्रतिमानी करतां, कुमति पाप बतावे, कल्पोमें देखो फुलनी पूजा, नागकेतु केवलपावे. ॥१६॥ पांचकोडी प्रभु फुलडे पुंजी, पाम्यो देश अढार, ओकावतारी भावने पाम्यो, कुमारपाल भूपाल. ॥१७॥ ज्ञाता सूत्रे, द्रौपदि पूजा, करती शिव सुख मांगे, शक्र स्तवनो पाठ ज भणती, प्रभु गुण अनुभव रागे. ॥१८॥ भिंतमां चित्रनी नारी आलेखी, त्यां मुनिने नवी रहेवू. दशवैकालिक आठमा अध्ययने ओ न्याय प्रतिमा लेवो. ॥१६॥ सद्गुण आणाधारक मुनिवर, जिन मारग सत्य भाखे, वस्तु गते जे वस्तु प्रकाशे, कुड कपट नवी राखे. ॥२०॥ नीज पक्षपातमें कुमति पडीया, जिन प्रतिमा नवी माने, विधवा नारी गर्भने न्योये, सूत्र पाठ राखे छाने. ॥२१॥ चक्षु दर्शनावरणिथी कुमति, जिन प्रतिमा नवि देखे, उग्यो प्रभाते रवि झळहळतो, घुवड तेजने पेखे. ॥२२॥ पोते मनमां कुमति जाणे, प्रतिमा सूत्रमा बोली, निज जननीने डाकण जाणे, मुख शुं न कहे खोली. ॥२३॥ जे जिनवर प्रतिमा नवि पूजे, नव दंडक ते जाशे, सूत्र आधारे प्रतिमा पूजे, मुक्ति तणां फल पाशे. ॥२४॥ चार निक्षेपा ठाणांगे भाख्यां, अनुयोग द्वारा दिखावे, ओकने आवरे अवरने ठंडे, कुमतिने लाज न आवे. ॥२५॥ सूतो माणस शब्द शुं जाणे, जागतो कदी न जागे,. जाणतो जिन वचन उत्थापे, समकित दूर भागे. ॥२६॥ इत्यादिक सूत्र पाठ सुणीने, कुमति दूर करीजे, द्रव्यभाव प्रभु पूजा करीने, नरभव लाहो लीजे. ॥२७॥ पंचमे आरे साधु श्रावकने, होये आधार सत्य जाणो, श्रीजिन आगम जिनवर प्रतिमा, सद्दहणा खरी आणो. ॥२८॥ तपगच्छ दिनमणि सरिखा दीपे, श्री हर्ष विजय गुरराया, तसपद पंकज चंद्रविजय गुरु, हितविजय गुण गाया. ॥२६।। (9) सासु वहुना संवादनुं स्तवन हीराबाई सासुने वीराबाई वहुजी, दर्शन करवाने जाय जो, वहु उंचा ने बारणां नीचां, देखी शीश नमायजो सज्जन सुणोजी, ओक सासुने वहु
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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